लक्ष्मीबाई कॉलेज में गोबर विवाद: परंपरा या प्रपंच?
DUSU (दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ) के अध्यक्ष रोनक खत्री ने लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ. प्रत्युष वत्सला के दफ्तर में घुसकर दीवारों और वाशरूम पर कच्चा गोबर पोत दिया। कॉलेज परिसर में ऐसी घटना पहली बार देखने को मिली, जिससे अफरातफरी और चर्चा दोनों छिड़ गई। DUSU अध्यक्ष ने ये कदम कॉलेज प्रशासन के उस फैसले के विरोध में उठाया जिसमें कक्षाओं की दीवारों पर ठंडक बनाये रखने के नाम पर गोबर का लेप किया गया था।
दरअसल, कॉलेज में वायरल हुए एक वीडियो ने आग में घी डालने का काम किया, जिसमें प्रिंसिपल खुद कक्षाओं की दीवारों पर गोबर का मिश्रण लगाती दिखीं। इसके बाद छात्रों का गुस्सा फूटा जो लंबे समय से भीषण गर्मी में पंखों और कूलर की मांग कर रहे थे। रोनक खत्री ने न सिर्फ कड़ी आपत्ति जताई, बल्कि अनोखे तरीके से विरोध जताते हुए सीधे दफ्तर में गोबर पोत दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि जब क्लासरूम में गोबर से ठंडक आ सकती है, तो प्रिंसिपल को भी अपने ऑफिस से एसी हटाकर यही व्यवस्था अपनानी चाहिए।
क्या थी प्रिंसिपल की दलील, छात्रों की असल मांगें क्या हैं?
प्रिंसिपल प्रत्युष वत्सला ने सफाई दी कि यह सब गोबर वाला प्रयोग उनके फैकल्टी के रिसर्च प्रोजेक्ट 'Heat Stress Control by Using Traditional Indian Knowledge' का हिस्सा है। उनके मुताबिक, गोबर और अन्य प्राकृतिक चीजों से मिली-जलि लेप को सिर्फ एक कम इस्तेमाल होने वाली कक्षा में लगाया गया, ताकि पारंपरिक तरीके से ठंडक में कितना फर्क आता है, इसका परीक्षण हो सके। वे इस अध्ययन को पर्यावरण के अनुकूल उपायों की खोज का हिस्सा बताती हैं।
हालांकि, छात्रों के लिए यह तर्क महज दिखावा लगा। दिल्ली की अप्रैल की चटक धूप में कक्षाओं का तापमान बर्दाश्त के बाहर चला गया था—ऐसे में पंखों और कूलरों की मांग जायज लगती है। लेकिन जवाब में छतों-दीवारों पर गोबर मिलना, छात्रों को चिढ़ाने या असल समस्याओं से ध्यान भटकाने जैसा प्रतीत हुआ। कॉलेज स्टाफ भी स्थिति संभालने में असमर्थ दिखा।
विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह ने पूरे मामले पर हैरानी जताई। उनका कहना था कि रिसर्च प्रयोगों को इस तरह सार्वजनिक प्रदर्शन बनाने से दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचती है। उन्होंने इस 'मजाक' पर शोध कार्यों में नियंत्रण और वैज्ञानिक सतर्कता बरतने की सलाह दी। वहीं, विरोधी गुट NSUI ने इसे छात्रों की जरूरी समस्याओं—जैसे छात्रवृत्तियां, इन्फ्रास्ट्रक्चर, गर्मी से जूझते क्लासरूम—से ध्यान हटाने वाली हरकत बताया।
यह विवाद अब केवल लक्ष्मीबाई कॉलेज तक सीमित नहीं रहा। दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर में परंपरागत बनाम आधुनिक समाधान पर बहस छिड़ गई है। क्या पारंपरिक ज्ञान हर तकनीकी समस्या का जवाब हो सकता है? क्या छात्रों पर प्रयोग बिना उनकी सहमति के किया जाना चाहिए? कुछ छात्रों का कहना है कि उन्हें इको-फ्रेंडली विकल्पों से कोई दिक्कत नहीं, लेकिन बुनियादी ढांचा मजबूत करना पहले जरूरी है।
फिलहाल, छात्रों और कॉलेज प्रशासन के बीच संवाद की डोर कमजोर पड़ती दिख रही है। ऐसे में शिक्षा व्यवस्था में तर्क और वैज्ञानिक सोच को कैसे प्रमुखता मिले, यह सवाल हर छात्र के मन में है।
nidhi heda
अप्रैल 19, 2025 AT 15:36DINESH BAJAJ
अप्रैल 20, 2025 AT 08:15Rohit Raina
अप्रैल 21, 2025 AT 02:56Prasad Dhumane
अप्रैल 21, 2025 AT 21:19rajesh gorai
अप्रैल 22, 2025 AT 10:35Rampravesh Singh
अप्रैल 23, 2025 AT 13:20Arvind Singh Chauhan
अप्रैल 23, 2025 AT 23:47AAMITESH BANERJEE
अप्रैल 24, 2025 AT 21:54