रविवार की सुबह इस्राइली सेना ने यमन से दागी गई मिसाइल को सफलतापूर्वक रोक लिया। यह घटना उस समय हुई जब इस्राइली वायु सेना ने यमनी बंदरगाह शहर हुदैदा में हौथी ठिकानों पर कई हवाई हमले किए थे। इन हमलों का उद्देश्य तेल अवीव पर हौथी ड्रोन हमले का प्रतिशोध लेना था, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।
इन हवाई हमलों में इस्राइली सेना ने अमेरिकी निर्मित एफ-15 और एफ-35 वॉरप्लेन का उपयोग किया। ये हमले अब तक के सबसे जटिल और लंबी दूरी की ऑपरेशनों में से एक थे। सना स्थित स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, इन हमलों में 80 लोग घायल हुए, जिनमें से अधिकांश गंभीर झुलस गए। हौथी प्रवक्ता मोहम्मद अब्दुलसलाम ने इस्राइल के इस हमले को ‘स्पष्ट आक्रमण’ बताया और कहा कि इसका उद्देश्य यमनी जनता की पीड़ा बढ़ाना और गाजा का समर्थन करने से रोकना है।
इस्राइली रक्षा मंत्री योआव गलांट ने घोषणा की कि इस्राइल आवश्यकतानुसार ऐसे हमले किसी भी स्थान पर करेगा। इस विवाद ने चिंता बढ़ा दी है कि यह संघर्ष लेबनान और अन्य स्थानों तक फैल सकता है। हुदैदा बंदरगाह यमन के लिए एक महत्वपूर्ण आपूर्ति मार्ग है, जो 2014 से चल रहे गृहयुद्ध में घिरा हुआ है। बंदरगाह पर इस्राइली हमलों ने यमनी आपूर्ति चेन को और भी कमजोर कर दिया है।
हवाई हमलों की गंभीरता को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि यमन और इस्राइल के बीच तनाव और बढ़ सकते हैं। दोनों पक्ष अपनी अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इस युद्ध की स्थिति में लेबनान और अन्य देशों के शामिल होने की संभावना बनी हुई है।
इस्राइली हमले को लेकर विभिन्न देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं। संयुक्त राष्ट्र ने इस हमले को लेकर चिंता जताई है और दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। वहीं, अमेरिका ने इस्राइल के आत्मरक्षा के अधिकार को समर्थन दिया है, जबकि अन्य यूरोपीय देशों ने इस्राइल और यमन के बीच तनाव को कम करने के प्रयासों का समर्थन किया है।
इस्राइल और यमन के बीच का ये संघर्ष न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डालता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसके गंभीर प्रभाव हो सकते हैं। युद्ध के इस माहौल में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की जिम्मेदारी बढ़ गई है कि वे इस तनाव को कम करने और शांति स्थापित करने के प्रयासों को तेज करें।
यमन पिछले कई वर्षों से गृहयुद्ध की चपेट में है, और हुदैदा बंदरगाह पर इस्राइली हमले ने यमनी जनता की स्थिति को और भी दयनीय बना दिया है। यमनी लोगों की जीवनयापन की स्थिति पहले से ही खराब थी और इस हमले के बाद उनके लिए स्थिति और भी कठिन हो गई है।
स्वास्थ्य सेवा और बुनियादी ढांचे की कमी के कारण यमनी जनता को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय सहायता संगठनों और देशों को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है कि यमन की स्थिति को कैसे सुधारा जा सके।
इस्राइल और यमन के बीच का यह संघर्ष न केवल इन दोनों देशों के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए गंभीर चिंता का कारण है। दोनों देशों को शांति और समृद्धि की दिशा में कदम बढ़ाने की सख्त जरूरत है ताकि उनकी जनता को राहत मिल सके। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और शांति प्रक्रियाओं को तेज करना चाहिए।
आने वाले दिनों में स्थिति कैसी बनती है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा, लेकिन इस समय आवश्यक है कि सभी पक्ष संयम बरतते हुए विवाद के समाधान की दिशा में कदम उठाएं।
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