जब सोशल मीडिया पर एक विशाल डायनासोर को पिंजरे में बंद दिखते हुए लोगों की भीड़ में फोटो‑खींचते हुए देखा गया, तो कई netizens ने उसे वास्तव में जीवित प्राचीन जीव मान लिया। लेकिन सरिता समल, फैक्ट‑चेक संवाददाता of Fact Crescendo ने 15 जुलाई 2025 को Liberty Wire द्वारा किए गए पोस्ट को लेकर विस्तृत जांच शुरू की और पाया कि यह कोई जीवित डायनासोर नहीं, बल्कि कानपुर के साकेत नगर में एक स्थानीय कंपनी द्वारा बना प्रचारात्मक मॉडल था।
पृष्ठभूमि: वायरल वीडियो का उद्भव
वीडियो पहली बार Liberty Wire के सोशल‑मीडिया हैंडल पर अपलोड हुआ, जिसमें एक बड़े पिंजरे के अंदर मानव आकार का डायनासोर कॉस्ट्यूम पहने कलाकार खड़ा था। कैप्शन में स्पष्ट रूप से लिखा था, “कानपुर के साकेत नगर में एक कंपनी ने प्रचार का अनोखा तरीका अपनाया।” फिर भी, कई दर्शकों ने इसे “दुनिया का सबसे बड़ा जीवित डायनासोर” कहकर शेयर किया।
वायरल वीडियो का विस्तृत विश्लेषण
Fact Crescendo की टीम ने फ्रेम‑बाय‑फ़्रेम निरीक्षण किया। प्रमुख संकेत थे:
- कॉस्ट्यूम की सिलवटें स्पष्ट रूप से मानव शरीर के साथ मिलती‑जुलती थीं।
- पिंजरे की लोहे की जालियां वास्तविक जंग‑ले गए धातु की बजाय हल्के धातु‑फ्रेम से बनी थीं, जो तेज़ी से लेआउट बदलने के लिए उपयोग होती हैं।
- शोर के पीछे चल रही ध्वनि केवल बैकग्राउंड संगीत थी, न कि डायनासोर के श्वास या कदमों की आवाज़।
इन सब के चलते टीम ने निष्कर्ष निकाला कि यह पूरी तरह से एक मार्केटिंग स्टंट था, न कि कोई वैज्ञानिक खोज। रिपोर्ट में सरिता समल ने कहा, “वायरल वीडियो को गलत तरीके से वास्तविक डायनासोर बताया जा रहा था, जिससे जनता में भ्रम उत्पन्न हुआ।”
इसी तरह के अन्य मामलों की जांच
Fact Crescendo अकेली नहीं है। भारत के कई फेक‑न्यूज़‑वॉर रूम ने समान झूठी दावों को तोड़ा है:
India Today के Anti Fake News War Room (AFWA) ने 9 मई 2022 को एक वीडियो में नदी के किनारे दौड़ते “बेबी डायनासोर” को कोटी (coati) दिखा दिया। उसी रिपोर्ट ने फिर से कहा कि डायनासोर 65 मिलियन साल पहले विलुप्त हो चुके हैं।
Newschecker.in ने और एक छोटे आकार के “डायनासोर” को AR‑टेक्नोलॉजी—Google Augmented Reality—के माध्यम से बनाया हुआ देखा। दोनों केसों ने दिखाया कि तकनीकी साधनों के साथ भी जनता को गुमराह करना आसान हो गया है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण: डायनासोर का अस्तित्व
वैज्ञानिक प्रमाण स्पष्ट है: डायनासोर लगभग 65 मिलियन वर्ष पहले क्रेटेशियस‑पैलियोसिन अवधि के अंत में लुप्त हो गये। ऑक्सफ़ोर्ड और बर्मिंघम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हाल ही में खनन क्षेत्रों में 200 फ़ुटप्रिंट‑आकार के फ़ॉसिल पाए, परंतु ये सभी प्राचीन अवशेष हैं, जीवित प्राणी नहीं। अर्जेंटीना में 23 कोटी साल पुराने जीवाश्मों की खोज भी यही साबित करती है कि आज के डायनासोर का कोई प्रमाण नहीं है।
इसलिए, जब कोई वीडियो “सजीव डायनासोर” दिखाता है, तो वैज्ञानिक तौर पर इसे “मिसलीडिंग” यानी गुमराह करने वाला माना जाता है। Fact Crescendo ने इस वर्गीकरण का उपयोग कर दिया है।
भविष्य की चुनौतियाँ और नियामक कदम
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर झूठी वैज्ञानिक दावों को रोकने के लिये दो मुख्य पहल आवश्यक हैं:
- सोशल‑मीडिया कंपनियों की स्वचालित फ़ैक्ट‑चेक एलगोरिदम को सुदृढ़ करना, ताकि ऐसे वीडियो जल्दी से फ़्लैग हो सकें।
- जनता में विज्ञान संचार को बढ़ावा देना, जिससे लोग “डायनासोर अभी भी मौजूद हैं” जैसी असंगत बात को सहजता से न मानें।
अन्य संस्थाएँ, जैसे GNTTV, ने भी समुद्र के किनारे दिखे लंबी गर्दन वाले जीवों को डायनासोर बताया, पर बाद में यह स्पष्ट हुआ कि वह जलाशय में रहने वाला समुद्री स्तनधारी था। ऐसे उदाहरण दर्शाते हैं कि विविध प्लेटफ़ॉर्म पर सतर्क रहना कितना ज़रूरी है।
निष्कर्ष
कानपुर के साकेत नगर में एक विज्ञापन मॉडल को बड़े स्तर पर गलत समझा गया, और सोशल‑मीडिया की तेज़ गति ने इसे गलत सूचना में बदल दिया। Fact Crescendo, सरिता समल की दिशा‑निर्देशित रिपोर्ट ने इस भ्रम को दूर कर दिया, यह दिखाते हुए कि डिजिटल युग में सत्य की खोज के लिये विश्लेषणात्मक सोच और फॅक्ट‑चेकिंग आवश्यक है। जनता को चाहिए कि वह किसी भी वायरल पोस्ट को बिना जांचे‑परखे न मानें, खासकर जब बात प्रागैतिहासिक जीवों जैसी असंभव चीज़ की हो।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
वायरल डायनासोर वीडियो किसने पोस्ट किया?
वीडियो Liberty Wire ने 15 जुलाई 2025 को अपने सोशल‑मीडिया हैंडल पर साझा किया। कैप्शन में स्पष्ट रूप से बताया गया था कि यह कानपुर के साकेत नगर में एक कंपनी का प्रचारात्मक स्टंट है, लेकिन कई दर्शकों ने इसे बिना जांचे वास्तविक डायनासोर समझ लिया।
Fact Crescendo ने इस वीडियो की जांच कैसे की?
टेक्निकल टीम ने फ्रेम‑बाय‑फ़्रेम विश्लेषण किया, कॉस्ट्यूम के जोड़‑तोड़, पिंजरे की बनावट, और ध्वनि‑ट्रैक की जाँच की। उन्होंने पाया कि कॉस्ट्यूम मानव शरीर के साथ मेल खाता है और ध्वनि सिर्फ बैकग्राउंड संगीत थी, जिससे निष्कर्ष निकला कि यह पूरी तरह से एक मार्केटिंग मॉडल था।
ऐसे झूठे वीडियो को रोकने के लिए कौन‑क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
सोशल‑मीडिया कंपनियों को स्वचालित फ़ैक्ट‑चेक एलगोरिदम लागू करने और उपयोगकर्ताओं को रिपोर्ट करने के आसान विकल्प प्रदान करने की सलाह दी गई है। साथ ही, विज्ञान‑संचार कार्यक्रमों को बढ़ावा देना, ताकि लोग प्राचीन जीवों के विलुप्त होने की वैज्ञानिक सच्चाई को समझ सकें।
डायनासोर आज भी मौजूद होने का दावा क्यों बेवकूफी है?
डायनासोर करीब 65 मिलियन साल पहले ही लुप्त हो गये। इस अवधि में पंख वाले पक्षियों जैसे कुछ वंशज विकसित हुए, पर मूल डाइनासोर आज नहीं हैं। विज्ञान की कई कार्बन‑डेटिंग, फ़ॉसिल रिकॉर्ड और भू‑विज्ञानिक प्रमाण यह सिद्ध करते हैं कि कोई जीवित डायनासोर नहीं है।
naveen krishna
अक्तूबर 24, 2025 AT 13:00वाह, बड़ा मज़ेदार स्टंट था!