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निर्भया केस: दोषियों ने तिहाड़ जेल पर लगाए दस्तावेज़ देने में देरी के आरोप, कोर्ट ने याचिका की खारिज

निर्भया केस: दोषियों ने तिहाड़ जेल पर लगाए दस्तावेज़ देने में देरी के आरोप, कोर्ट ने याचिका की खारिज

निर्भया केस: तिहाड़ जेल प्रशासन पर दस्तावेज़ ना देने का आरोप

2012 के निर्भया केस में दोषियों की फांसी से पहले हैरतअंगेज़ मोड़ सामने आया। तीन दोषियों—विनय शर्मा, अक्षय कुमार सिंह और पवन गुप्ता—ने अदालत में शिकायत दर्ज करवाई कि तिहाड़ जेल प्रशासन जानबूझकर जरूरी दस्तावेज़ उनके वकील को नहीं दे रहा है। इनका कहना था कि बिना इन कागजों के वे न तो दया याचिका लगा सकते हैं, न ही सुधारात्मक (क्यूरेटिव) याचिका दाखिल कर सकते। वकील ए.पी. सिंह ने बताया कि विनय का 70 पन्नों का पर्सनल डायरी, मेडिकल रिपोर्ट्स और पवन व अक्षय से जुड़े दस्तावेज़ समय पर नहीं मिले। विनय की डायर—‘दरिंदा’—और उसकी बनाई पेंटिंग्स दया याचिका का हिस्सा बननी थी। वहीं, अक्षय और पवन की क्यूरेटिव याचिका के लिए दस्तावेज़ इंतजार में थे।

दोषियों के वकील एपी सिंह ने कोर्ट को बताया कि जेल प्रशासन की ये देरी कानूनी अधिकारों में बाधा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि विनय को जेल में धीमा जहर दिया जा रहा है, और उसकी मेडिकल रिपोर्ट्स छुपाई जा रही हैं। आरोपों की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने 25 जनवरी 2020 को सुनवाई रखी थी।

कोर्ट का जवाब और तिहाड़ प्रशासन का पक्ष

सुनवाई के दौरान तिहाड़ जेल प्रशासन ने कोर्ट को बताया कि सभी मांगे गए दस्तावेज़ दोषियों या उनके वकील को दे दिए गए हैं और कोई दस्तावेज़ रोका नहीं गया है। सरकार की तरफ से पेश हुए पब्लिक प्रॉसीक्युटर ने कोर्ट में कहा कि दोषी जानबूझकर फांसी टालने की कोशिश कर रहे हैं और ये दस्तावेज़ का मुद्दा सिर्फ देरी की रणनीति है। अदालत ने याचिका खारिज करते हुए दोषियों के वकील को विनय की डायरी और अन्य दस्तावेज़ की तस्वीरें लेने की इजाजत दे दी।

इस प्रक्रिया के दौरान दोषियों के वकील ने कोर्ट के सामने फिर से पुराने आरोप दोहराए और विनय की स्वास्थ्य रिपोर्ट मांगने की बात की। मगर तिहाड़ प्रशासन ने साफ किया कि दस्तावेज़ में कोई कमी नहीं रही है। कोर्ट ने मामला यहीं समाप्त कर दिया और फांसी की तारीख 1 फरवरी, 2020, सुबह 6 बजे पर बरकरार रखी।

बता दें कि यह वही केस है जिसने पूरे देश को हिला दिया था—2012 में दिल्ली की सड़कों पर 23 वर्षीय पैरामेडिकल छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या। इनमें से एक मुकेश सिंह की दया याचिका राष्ट्रपति द्वारा पहले ही खारिज की जा चुकी थी, जबकि बाकी दोषी अभी अंतिम कानूनी कोशिशों में लगे थे।

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7 टिप्पणि

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    Jeyaprakash Gopalswamy

    जुलाई 26, 2025 AT 18:26
    ये सब देरी की चालें तो बस फांसी टालने के लिए हैं। जेल वालों को इतना ध्यान देने की जरूरत नहीं, जब बच्ची के साथ जो हुआ, उसका बदला लेने का समय आ गया है।
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    ajinkya Ingulkar

    जुलाई 28, 2025 AT 08:22
    ये दोषी अपनी गंदगी को कागजों के नाम पर छुपाने की कोशिश कर रहे हैं। विनय की डायरी? वो तो उसके दिमाग का खून है, जिसने एक बच्ची को इतना तानाशाही से तोड़ दिया। अगर दस्तावेज़ मिल गए, तो भी ये फिर कहेंगे कि एक पन्ना गायब है। ये सब जाल है, और अदालत ने सही फैसला किया। इन जानवरों को फांसी देना न्याय है, न कि बर्बरता।
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    nidhi heda

    जुलाई 28, 2025 AT 10:41
    बस रुको... मैं रो रही हूँ 😭 ये विनय की डायरी तो दिल तोड़ देगी... उसने जो कल्पना की होगी, उसमें शायद वो बच्ची का चेहरा भी था... और अब ये दोषी इतने बड़े बॉस बन गए हैं कि दस्तावेज़ नहीं मिले? 🤦‍♀️
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    DINESH BAJAJ

    जुलाई 28, 2025 AT 18:27
    अरे ये सब नाटक है। जेल में दस्तावेज़ देने में देरी? क्या तुम्हें लगता है कि जेल वाले इनके लिए लक्जरी सर्विस चला रहे हैं? ये लोग तो बस अपनी गलतियों को फांसी से बचने के लिए हर चीज़ का इस्तेमाल कर रहे हैं। अगर ये दया याचिका दाखिल करने में दिक्कत हो रही है, तो इसका मतलब है कि उनके पास कुछ भी नहीं है।
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    Rohit Raina

    जुलाई 30, 2025 AT 04:16
    देखो, अगर जेल ने दस्तावेज़ दिए हैं, तो अदालत का फैसला ठीक है। लेकिन अगर दस्तावेज़ नहीं दिए गए, तो ये एक बड़ी बात है। न्याय का मार्ग तो शुद्ध होना चाहिए, न कि दोनों तरफ झूठ बोलने का मैदान। इसलिए अगर वकील को तस्वीरें दी गईं, तो अब बाकी बातें अदालत के अंदर ही सुलझानी चाहिए।
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    Prasad Dhumane

    जुलाई 31, 2025 AT 02:00
    इस केस के बारे में सोचते हुए मैं एक बात कहना चाहता हूँ-न्याय तभी न्याय है जब वो निर्णय के बाद भी इंसानी दर्द को समझता हो। इन दोषियों के दस्तावेज़ या डायरी जरूरी हैं या नहीं, ये बात अलग है। लेकिन अगर एक व्यक्ति को उसके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है, तो ये न्याय का नाम नहीं, बल्कि बदला लेने का नाम है। हम जिस न्याय की मांग करते हैं, उसी का अनुसरण करना होगा। वरना हम भी उन लोगों के साथ शामिल हो जाते हैं जिन्होंने निर्भया के साथ ये सब किया।
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    rajesh gorai

    जुलाई 31, 2025 AT 19:28
    इस न्यायिक प्रक्रिया में एक गहरी एपिस्टेमोलॉजिकल अनिश्चितता निहित है-क्या दस्तावेज़ का अभाव एक ऑपरेशनल फेलियर है या एक सिस्टमिक अपराध का प्रतीक? यदि जेल प्रशासन के अधिकारी एक अनुपातिक रूप से असमान एक्सेस डिलीवर कर रहे हैं, तो यह न्याय के डोमेन में एक पॉलिटिकल एक्सप्रेशन के रूप में देखा जाना चाहिए। फांसी का निर्णय तो तार्किक है, लेकिन प्रक्रियात्मक न्याय का अभाव एक सामाजिक अनुचितता है।

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