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प्रधानमंत्री मोदी ने इमरजेंसी की आलोचना पर ओम बिड़ला की सराहना की

प्रधानमंत्री मोदी ने इमरजेंसी की आलोचना पर ओम बिड़ला की सराहना की

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला की सराहना की

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को एक ऐतिहासिक और साहसिक बयान के लिए धन्यवाद दिया। यह तारीफ उस समय के लिए की गई जब ओम बिड़ला ने 1975 में इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा लगाए गए इमरजेंसी की तीखी आलोचना की। बिड़ला ने अपनी स्पीच में इस दौर को भारतीय लोकतंत्र का 'काला अध्याय' करार दिया। इस बयान को लेकर लोकसभा में विपक्ष की ओर से कड़ी प्रतिक्रियाएँ भी आईं।

25 जून, 1975 का काला दिवस

25 जून, 1975 का दिन भारतीय इतिहास में एक ऐसा दिन है जिसे लोकतंत्र के प्रति हमलों के रूप में याद किया जाता है। इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लागू की थी, जिसके चलते व्यक्तिगत और मीडिया की स्वतंत्रता पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए थे। इस दौरान कई विपक्षी नेताओं को जेल में भी डाल दिया गया था। ओम बिड़ला ने अपने भाषण में विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि कैसे इस इमरजेंसी ने भारतीय लोकतंत्र को हानि पहुँचाई।

लोकतंत्र का गला घोंटना

ओम बिड़ला ने अपने भाषण में यह भी बताया कि किस तरह से आपातकाल के दौरान संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन किया गया और किसी भी विरोध को दबाने के लिए सरकारी तंत्र का दुरुपयोग हुआ। उन्होंने कहा कि यह आपातकाल का दौर भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सबसे अधिक पेचीदा और कलंकित करने वाला रहा है। उनकी इस टिप्पणी पर विपक्ष ने कड़ी आपत्ति दर्ज की।

प्रधानमंत्री की सराहना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मुद्दे पर ओम बिड़ला की स्पष्टता और साहस की सराहना की। मोदी ने कहा कि यह समय हमारे युवाओं को समझाने का है कि कैसे संविधान का उल्लंघन करके लोकतंत्र को नष्ट करने की कोशिश की गई थी। यह युवा पीढ़ी के लिए एक गंभीर शिक्षा है कि लोकतंत्र की सुरक्षा कितनी आवश्यक है।

समारोह में मौन की अपील

ओम बिड़ला ने अपना भाषण समाप्त करते हुए सभी सदस्यों से उन लोगों के सम्मान में एक मिनट का मौन रखने की अपील की जो इस इमरजेंसी के दौरान पीड़ित हुए थे। इसका उद्देश्य उन लोगों को याद करना था जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और लोकतंत्र को फिर से बहाल करने में योगदान दिया।

विपक्ष का विरोध

इस बात का विपक्ष ने जमकर विरोध किया और इसका असर संसद की कार्यवाही पर भी देखने को मिला। विपक्षी दल के सदस्यों ने कहा कि यह एक राजनैतिक मुद्दा बनाकर संसद के समय को बर्बाद किया जा रहा है। इसके बावजूद, प्रधानमंत्री मोदी और अन्य सत्ताधारी दल के सदस्यों ने इस मुद्दे पर बिड़ला की स्पष्टता और साहस की सराहना की।

निष्कर्ष

इस प्रकार देखा जा सकता है कि इमरजेंसी का मुद्दा भारतीय राजनीति में आज भी एक महत्वपूर्ण विषय बना हुआ है। ओम बिड़ला की इस स्पीच ने इस मुद्दे को फिर से उजागर कर दिया है और यह बात स्पष्ट कर दी है कि लोकतंत्र की सुरक्षा और संवैधानिक मूल्यों का पालन करना हर नागरिक और नेता की जिम्मेदारी है।

अतः इस घटना से यह सिखाया जा सकता है कि इतिहास की गलतियों से सबक लेना आवश्यक है, ताकि भविष्य में लोकतंत्र पर किसी तरह का खतरा न आए।

टैग: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओम बिड़ला इमरजेंसी लोकतंत्र

15 टिप्पणि

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    PRATIKHYA SWAIN

    जून 27, 2024 AT 12:55
    सच में, इमरजेंसी का इतिहास हमें हमेशा याद रखना चाहिए।
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    Akul Saini

    जून 28, 2024 AT 11:37
    ओम बिड़ला के भाषण में एक अद्वितीय नैतिक साहस था - जब सब कुछ नियंत्रित था, तब भी वो संविधान के अनुसार बोल उठे। इस तरह की निष्ठा आज के राजनीतिक वातावरण में लगभग विलुप्त हो चुकी है। लोकतंत्र का अस्तित्व तभी बना रहता है जब कुछ लोग खतरे के बावजूद सच बोलते हैं।
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    Arvind Singh Chauhan

    जून 29, 2024 AT 18:14
    क्या आप जानते हैं कि इमरजेंसी के दौरान कितने पत्रकार गायब हुए? कितने विपक्षी नेता बिना किसी आरोप के जेल में डाले गए? ये सिर्फ इतिहास नहीं, ये एक चेतावनी है कि शक्ति का दुरुपयोग कैसे एक देश को अंधकार में डाल सकता है।
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    AAMITESH BANERJEE

    जून 30, 2024 AT 07:01
    मुझे लगता है कि ये बात बहुत जरूरी है कि हम युवाओं को ये बताएं कि लोकतंत्र एक वस्तु नहीं है जिसे बंद कर दिया जा सके। ये एक जीवित प्रक्रिया है, जिसे हर पीढ़ी अपनी जिम्मेदारी से बचानी होती है। ओम बिड़ला ने इसे सही तरीके से समझा था।
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    Akshat Umrao

    जुलाई 1, 2024 AT 12:50
    बहुत अच्छा 😊 इतिहास को भूलना बर्बरता है। धन्यवाद ओम बिड़ला 🙏
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    Sonu Kumar

    जुलाई 2, 2024 AT 05:08
    क्या आपने कभी सोचा है कि आज के राजनीतिक वातावरण में, जब कोई भी आलोचना करता है, तो उसे 'विदेशी हितों' का गुलाम कहा जाता है? ओम बिड़ला का बयान तो एक असली नागरिक का बयान था - न कोई राजनीतिक नाटक, न कोई ट्रेंड।
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    sunil kumar

    जुलाई 2, 2024 AT 15:00
    इमरजेंसी के दौरान संविधान के अनुच्छेद 352 का दुरुपयोग हुआ, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता भी प्रभावित हुई। यह एक ऐसा संवैधानिक दुर्घटना था जिसे हमें शिक्षा के रूप में नहीं, बल्कि चेतावनी के रूप में देखना चाहिए।
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    Deepti Chadda

    जुलाई 3, 2024 AT 17:22
    अब ये सब बातें जो बोल रहे हो वो तो इंदिरा गांधी के खिलाफ हैं? आज की सरकार ने क्या गलत किया? 🇮🇳🔥
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    Anjali Sati

    जुलाई 5, 2024 AT 14:34
    इमरजेंसी की बात करना आसान है... लेकिन आज के लोगों को याद दिलाना कि तुम्हारे पास अभी भी वो स्वतंत्रता है जो उन्होंने लड़कर पाई - ये बहुत जरूरी है।
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    Preeti Bathla

    जुलाई 7, 2024 AT 04:29
    अरे भाई, ओम बिड़ला ने जो कहा था वो सच था। लेकिन आज के लोग जो इमरजेंसी के बारे में बात कर रहे हैं, वो खुद अपने घर में फोन चुराने वाले हैं! 😒 जो लोग अपनी आवाज़ नहीं उठा पाते, वो इतिहास की बातें क्यों करते हैं?
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    Aayush ladha

    जुलाई 7, 2024 AT 05:06
    अरे ये सब बातें तो बस एक राजनीतिक ट्रेंड है। 1975 में जो हुआ वो अलग बात है, लेकिन आज की सरकार ने क्या बर्बरता की? नहीं तो तुम लोग ये बातें क्यों लगातार घुमा रहे हो?
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    Rahul Rock

    जुलाई 8, 2024 AT 07:54
    लोकतंत्र की सुरक्षा केवल अल्पसंख्यकों के लिए नहीं, बल्कि अधिकारों के लिए हर उस व्यक्ति के लिए है जो शांति से अपनी आवाज़ उठाना चाहता है। ओम बिड़ला ने एक व्यक्ति के रूप में अपना अधिकार निभाया - और यही वो बिंदु है जिसे हम भूल रहे हैं।
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    Annapurna Bhongir

    जुलाई 9, 2024 AT 13:08
    इमरजेंसी बुरी थी। बात खत्म।
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    MAYANK PRAKASH

    जुलाई 10, 2024 AT 03:40
    मैं अपने दादा से सुना है कि उस दौर में रेडियो पर सिर्फ सरकारी खबरें चलती थीं। अगर आज भी ऐसा हो जाए तो क्या होगा? इसलिए ओम बिड़ला के बयान को सराहना नहीं, बल्कि उसकी याद रखना जरूरी है।
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    Akash Mackwan

    जुलाई 11, 2024 AT 05:42
    ये सब बातें तो बस एक नाटक है! इमरजेंसी का जिक्र करके लोग अपनी राजनीतिक लोकप्रियता बढ़ा रहे हैं। जो आज इमरजेंसी के खिलाफ बोल रहे हैं, वो अगर वहीं होते तो शायद अपनी आवाज़ दबा देते! ये सब बस बयानबाजी है।

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