शेयर बाजार ने 25 सितंबर को इतिहास के कुछ सबसे कठिन दिन देखे। BSE सेंसेक्स 555.95 अंक गिरकर अपनी पिछली बंद कीमत से नीचे रह गया, जबकि निफ्टी 24,900 के तकनीकी समर्थन स्तर से नीचे धकेल दिया गया। इस गहरी गिरावट के पीछे चार प्रमुख कारण उभर कर सामने आए हैं:
इन कारणों का सम्मिलित प्रभाव बाजार के गिरते रुझान को तेज़ कर रहा है, जिससे कई लख करोड़ का मूल्य क्षीण हुआ है। अब तक के आंकड़े दिखाते हैं कि मध्य‑अगस्त से मध्य‑सितंबर के बीच निफ्टी 24,700‑25,100 की तकनीकी रेंज से नीचे गिर गया।
सेंसेक्स और निफ्टी की लगातार गिरावट का असर सिर्फ सूचकांकों तक सीमित नहीं रहा। वित्तीय सेवाएँ, आईटी और फार्मास्यूटिकल सेक्टरों ने सबसे ज्यादा प्रभाव झेला। बैंकों में नॉन‑परफ़ॉर्मिंग एसेट्स (NPA) की संभावनाएँ बढ़ीं, जबकि कॉरपोरेट कमाई के अनुमान भी नीचे मर गए। छोटे‑छोटे रिटेल निवेशकों को बड़ी हानि का सामना करना पड़ा, जिससे निवेश‑विश्वास में एक बड़ी खाई बन गई।
इन चुनौतियों के जवाब में RBI ने तुरंत फॉरेक्स मार्केट में लिक्विडिटी बढ़ा कर रुपये को स्थिर करने की कोशिश की। साथ ही, SEBI ने अत्यधिक वोलैटिलिटी को रोकने के लिए सर्किट‑ब्रेकर्स के लागू करने की सीमा को घटा दिया और बड़े शेयरधारकों से अचानक करके शेयर बेचने पर प्रतिबंध लगाया। सरकार भी आर्थिक स्थिरता को बहाल करने के लिये संभावित प्रोत्साहन पैकेज पर विचार कर रही है, जिसमें टैक्स में रियायतें और बड़े बैंकों को अतिरिक्त लिक्विडिटी प्रदान करना शामिल हो सकता है।
साथ ही, विशेषज्ञों ने कहा है कि यदि विदेशी निवेशकों की शमन न हो और रुपये की भावना में सुधार न हो तो बाजार को आगे भी अस्थिरता का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने निवेशकों को दीर्घकालिक पोर्टफोलियो बनाते समय विविधीकरण पर ज़ोर देने और सोने‑चांदी जैसे हेजिंग विकल्पों को संतुलित रूप से शामिल करने की सलाह दी।
अंततः, बाजार में स्थिरता लाने के लिये न केवल मौद्रिक नीति बल्कि संरचनात्मक सुधारों की भी जरूरत है। यदि नीति निर्माताओं ने रीफॉर्म, इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश और कॉर्पोरेट गवर्नेंस में सुधार करने के लिये ठोस कदम उठाए, तो निवेशकों का भरोसा धीरे‑धीरे लौट सकता है। तब तक, निवेशकों को सतर्क रहना होगा और बाजार के रुझानों को निकटता से मॉनिटर करना चाहिए।
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