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सूर्य ग्रहण 21 सितंबर 2025: भारत से दिखाई नहीं देगा, जानें समय, दृश्यता और धार्मिक नियम

सूर्य ग्रहण 21 सितंबर 2025: भारत से दिखाई नहीं देगा, जानें समय, दृश्यता और धार्मिक नियम

रिपोर्ट: शिवांग

साल 2025 का अंतिम सूर्य ग्रहण 2025 21 सितंबर की रात से शुरू होकर 22 सितंबर की सुबह तक चलेगा, लेकिन भारतीय आसमान में इसकी कोई झलक नहीं मिलेगी। वजह साफ है—ग्रहण का पूरा काल भारत में रात के वक्त पड़ रहा है, जब सूर्य क्षितिज के नीचे होता है। इस वजह से न तो नग्न आंखों से और न ही किसी सुरक्षित उपकरण से इसे यहां से देखा जा सकता है।

समय पर आते हैं। आंशिक सूर्य ग्रहण 21 सितंबर की रात 10:59 बजे (IST) शुरू होगा और 22 सितंबर की सुबह 3:23 बजे (IST) खत्म। बीच का सबसे बड़ा क्षण 22 तारीख को 1:11 AM (IST) पर आएगा। यानी कुल अवधि करीब 4 घंटे 24 मिनट। यह लंबी खगोलीय घटना है, पर दृश्यता भारत, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका और अफगानिस्तान में शून्य रहेगी, क्योंकि इन क्षेत्रों में उस समय रात होगी।

कब, कहाँ और कितना दिखेगा

दृश्यता का केन्द्र दक्षिणी गोलार्ध होगा। सबसे नाटकीय दृश्य अंटार्कटिका में दिखेंगे, जहां सूर्य का लगभग 86% भाग चंद्रमा से ढक जाएगा। वहां मौसम और क्षितिज की स्थिति अनुकूल रही तो वैज्ञानिकों और अभियानों के लिए यह शानदार मौका होगा।

न्यूज़ीलैंड में यह ग्रहण दक्षिणी हिस्सों में सूर्योदय के समय के आसपास लगेगा। इसका मतलब—सुबह का पहला दृश्य ही चंद्र-दंशी (क्रीसेंट) सूर्य हो सकता है। सितंबर में डुनेडिन, इन्वर्कार्गिल जैसे शहरों में सूर्योदय लगभग 6:30–7:30 बजे (स्थानीय समय) के बीच होता है, इसलिए शुरुआती आधा घंटा सबसे अहम रहेगा।

पूर्वी ऑस्ट्रेलिया—क्वींसलैंड, न्यू साउथ वेल्स और तस्मानिया के कुछ हिस्सों—में भी आंशिकता देखी जाएगी। यहां घटना भोर के आसपास शुरू होगी, इसलिए क्षितिज साफ, बादलों से मुक्त और खुला पूर्वी दृश्य बहुत मायने रखेगा।

प्रशांत द्वीपों में अलग-अलग स्तर की ढकान दर्ज होगी—टोंगा में लगभग 32%, फिजी में 27%, कुक द्वीपसमूह में 23% और सामोआ में करीब 17% तक। जहां आप हैं, उसके मुताबिक चंद्रमा की छाया का बाहरी हिस्सा (पैनम्ब्रा) सूर्य के डिस्क को हल्का-हल्का काटता दिखेगा।

कौन-कौन इसे बिल्कुल नहीं देख पाएगा? भारत समेत दक्षिण एशिया के बड़े हिस्से, मध्य एशिया का एक भाग और लगभग पूरा उत्तर व दक्षिण अमेरिका इस बार सूची से बाहर हैं। सीधे कारण पर लौटें—ग्रहण की ज्यामिति, पृथ्वी का घूर्णन और आपके स्थान का स्थानीय समय। जब आपके यहां रात है और सूर्य क्षितिज के नीचे है, तो आसमान में दिखने का सवाल ही नहीं उठता।

यह आंशिक ग्रहण है—यानी चंद्रमा सूर्य के डिस्क का केवल कुछ हिस्सा ढकता है। कहीं 15–20% तो कहीं 70–80% तक। जहां-जहां चंद्र छाया का गहरा केंद्रीय भाग (अम्ब्रा) पृथ्वी को छूती ही नहीं, वहां पूर्ण सूर्य ग्रहण संभव नहीं होता, और यही वजह है कि इस बार ‘टोटलिटी’ किसी आबाद बड़े भूभाग पर नहीं आएगी।

वैज्ञानिक समझ, संस्कृति और सुरक्षित तरीके

आखिर होता क्या है? सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में आते हैं, चंद्रमा बीच में खड़ा होकर सूर्य के प्रकाश का हिस्सा रोक देता है। जब अम्ब्रा आपके सिर के ऊपर से गुजरती है, तो पूर्ण सूर्य ग्रहण बनता है—दिन के उजाले में कुछ मिनटों का ‘कृत्रिम सांवेरा’। जब केवल बाहरी छाया यानी पैनम्ब्रा गुजरती है, तो आंशिक ग्रहण दिखता है—सूर्य का टुकड़ा जैसे काटा गया हो।

इस घटना की टाइमिंग एक दिलचस्प संयोग के साथ है—यह सितंबर इक्विनॉक्स (बराबर दिन-रात) से बस एक दिन पहले पड़ रही है। इक्विनॉक्स के आसपास सूर्य की उगने-बैठने की दिशा और ऊंचाई की ज्यामिति बदलती है, इसलिए सूर्योदय-क्षेत्रों में फोटोग्राफी और टाइम-लैप्स के लिए दृश्य खास बन जाते हैं।

धार्मिक संदर्भ भी इस बार चर्चा में है। 21 सितंबर को हिंदू पंचांग के अनुसार सर्व पितृ अमावस्या (पितृ पक्ष का अंतिम दिन) पड़ रही है। सामान्य तौर पर जब ग्रहण दिखाई देता है, तो सूतक और कुछ विधि-निषेध मानने की परंपरा है। लेकिन नियम बिल्कुल साफ है—जो ग्रहण आपके क्षेत्र में दिखे ही नहीं, उसके लिए सूतक लागू नहीं होता। इसलिए भारत में इस तारीख को कोई सूतक नहीं माना जाएगा। हां, कई परिवार पितृ तर्पण और दान जैसी परंपराएं अपने-अपने रीति से करते हैं—यह उनकी श्रद्धा पर निर्भर है, वैज्ञानिक मान्यता से इसका लेना-देना नहीं।

सुरक्षा की बात सबसे पहले। सूर्य को कभी भी बिना सुरक्षित फिल्टर के सीधे न देखें—आंशिक ग्रहण हो, तब भी नहीं। साधारण धूप के चश्मे, रंगीन कांच, एक्स-रे शीट, सीडी/डीवीडी—सब बेअसर और आंखों के लिए खतरनाक हैं। सुरक्षित देखने के तरीके ये हैं:

  • ISO 12312-2 मानक वाले सर्टिफाइड सोलर-व्युअर्स/इक्लिप्स ग्लासेज का ही उपयोग करें। खरोंचें हों तो बदल दें।
  • पिनहोल प्रोजेक्टर बनाएं—एक सुई के छेद से सूर्य की छवि को दूसरे कागज/दीवार पर प्रोजेक्ट करें। आंख सीधे सूर्य पर न जाए, बस प्रोजेक्शन देखें।
  • दूरबीन/टेलीस्कोप/कैमरा के लिए समर्पित सौर फिल्टर अनिवार्य है। बिना फिल्टर के व्यूफाइंडर में झांकना गंभीर नुकसान कर सकता है।
  • बच्चों के साथ खास निगरानी रखें। उन्हें देखने से पहले और बाद में चश्मा पहनना/उतारना सिखाएं।

न्यूज़ीलैंड और पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के दर्शकों के लिए छोटा-सा प्लानर: सूर्योदय से 20–30 मिनट पहले लोकेशन पर पहुंचें, क्षितिज साफ हो, तो बेहतर। समुद्र-किनारा, खुली पहाड़ी या ऊंचा मैदान अच्छा रहेगा। मौसम क्लाउडी हो तो ब्रेक-इन-क्लाउड्स का इंतजार करें, क्रीसेंट-डिस्क बादलों की पतली परत से भी झलक सकती है—फिर भी बिना फिल्टर देखने की गलती न करें।

भारत में खगोल-प्रेमी क्या करें? लाइव कवरेज देखना बढ़िया विकल्प है। प्रमुख वेधशालाएं और स्पेस एजेंसियां आमतौर पर रीयल-टाइम स्ट्रीम करती हैं, जहां टाइम-स्टैम्प, मैक्सिमम ऑब्स्क्यूरेशन और अलग-अलग शहरों के दृश्य लगातार मिलते रहते हैं। अगर आप स्कूल/क्लब चलाते हैं, तो इसके साथ एक पिनहोल-प्रोजेक्टर वर्कशॉप या ‘सेफ-सोलर-व्यूइंग’ सेशन भी जोड़ सकते हैं—बच्चों को अगली दृश्य योग्य घटना के लिए तैयार करने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा।

अब 2025 की ग्रहण-श्रृंखला पर एक नज़र। इस साल की शुरुआत में एक आंशिक सूर्य ग्रहण हुआ था। साल में दो चंद्र ग्रहण भी हैं—दोनों पूर्ण—एक मार्च में और दूसरा सितंबर में। 21–22 सितंबर का यह आंशिक सूर्य ग्रहण कैलेंडर का अंतिम सौर आयोजन है। यानी दक्षिणी गोलार्ध वालों के लिए यह साल की आखिरी ‘सन-एंड-मून एलाइन्मेंट’ देखने का मौका है।

आगे क्या? अगला बड़ा पूर्ण सूर्य ग्रहण 12 अगस्त 2026 को ग्रीनलैंड–आइसलैंड–स्पेन की पट्टी पर आएगा; भारत से इसकी दृश्यता नहीं होगी। 2 अगस्त 2027 का पूर्ण सूर्य ग्रहण उत्तरी अफ्रीका और पश्चिम एशिया से गुजरेगा—भारत के पश्चिमी–दक्षिणी हिस्सों में उस दिन आंशिकता देखने की संभावनाएं चर्चा में रहेंगी। सटीक मानचित्र और स्थानीय समय के लिए आधिकारिक पंचांग और खगोलीय संस्थान घटना के करीब विस्तृत विवरण जारी करते हैं—उन्हीं पर भरोसा करें।

कई लोग पूछते हैं—ग्रहण का कोई दुष्प्रभाव होता है? विज्ञान की दृष्टि से गर्भवती महिलाओं, पकाए हुए भोजन, पौधों या पालतू जानवरों पर ग्रहण का कोई सिद्ध हानिकारक असर नहीं पाया गया। हां, आंखें संवेदनशील हैं—यह जोखिम वास्तविक है। इसलिए सुरक्षा नियमों का पालन ही सबसे जरूरी बात है।

अंटार्कटिका में 80% से अधिक ढकान क्यों? क्योंकि ग्रहण की ज्यामिति और चंद्रमा की छाया का पथ इस बार दक्षिणी अक्षांशों से ज्यादा मेल खाता है। चंद्रमा पृथ्वी से थोड़ी अधिक दूरी पर हो तो उसका कंगन-सा आकार (एंगुलर डायमीटर) छोटा दिखता है, और छाया की केंद्रीय पट्टी पतली या पृथ्वी से ऊपर-नीचे रह जाती है—तभी ज्यादातर जगहों पर आंशिकता दिखती है।

अगर आप फोटोग्राफर हैं, तो एक चेकलिस्ट बना लें—ND फिल्टर नहीं, सोलर फिल्टर ही; ट्राइपॉड, रिमोट शटर, 1/1000 सेकंड से तेज स्पीड के साथ ब्रैकेटिंग; लैंडस्केप में फोरग्राउंड (लाइटहाउस/पियर/ट्रीलाइन) जोड़ें, क्योंकि सूर्योदय के क्रीसेंट शॉट्स तभी कहानी कहते हैं। और हां, पहले से रिक्की करके देखें कि सूर्य कहां से उगेगा—कंपास/सूर्य-अज़ीमुथ ऐप मदद कर सकता है।

रिकैप के तौर पर मुख्य बातें पकड़ लें—भारत में दृश्यता शून्य, इसलिए सूतक नहीं; दक्षिणी गोलार्ध में आंशिकता के शानदार दृश्य; कुल अवधि 4 घंटे 24 मिनट; मैक्सिमम 1:11 AM (IST); इक्विनॉक्स-ईव का दिलचस्प संयोग; और सुरक्षा—चाहे आप जहां भी हों—नॉन-नेगोशिएबल। अगली दृश्य योग्य घटना तक यही तैयारी आपकी सबसे काम आने वाली पूंजी है।

टैग: सूर्य ग्रहण 2025 21 सितंबर ग्रहण भारत में दृश्यता पितृ पक्ष

12 टिप्पणि

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    deepika singh

    सितंबर 21, 2025 AT 03:19

    भारत में दिखने वाला नहीं है तो भी इसकी जानकारी देने के लिए धन्यवाद! 🌞🌕 अगर आपको लगता है कि ग्रहण तो बस अंधविश्वास का मुद्दा है, तो ये पोस्ट आपको बताती है कि विज्ञान और संस्कृति एक साथ कैसे रह सकते हैं। सुरक्षा के नियम तो बहुत जरूरी हैं - आंखें बचाना है तो फिल्टर जरूर पहनें! और हां, पिनहोल प्रोजेक्टर बनाने का आइडिया तो बहुत कूल है - बच्चों के साथ एक्टिविटी बन जाएगा।

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    amar nath

    सितंबर 21, 2025 AT 20:55

    यार भाई इतना लंबा पोस्ट पढ़ा मैंने... और फिर भी समझ नहीं आया कि हम इसे क्यों नहीं देख पाएंगे 😅 लेकिन जो देख सकते हैं वो बहुत लकी हैं! ऑस्ट्रेलिया में तो ये ग्रहण देखने के लिए बड़ा फेस्टिवल हो जाएगा, हम तो बस यूट्यूब पर लाइव देखेंगे। और हां, सूर्योदय के समय जब चंद्रमा ने सूरज को काट लिया तो वो दृश्य तो बहुत जबरदस्त होगा - फोटोग्राफर्स के लिए तो स्वर्ग है!

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    Pragya Jain

    सितंबर 22, 2025 AT 01:33

    हिंदू धर्म के नियम तो हमेशा से बहुत समझदारी से बने हैं - जहां ग्रहण नहीं दिख रहा, वहां सूतक क्यों? ये तो बस बुरी आदत है कि लोग बिना वजह के डरते हैं। अगर आप रात को सो रहे हैं तो आपको ग्रहण का क्या लेना-देना? हमारी परंपरा तो ज्ञान से बनी है, अंधविश्वास से नहीं। अगर कोई इसे नहीं समझता, तो उसे ये पोस्ट पढ़नी चाहिए।

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    Shruthi S

    सितंबर 23, 2025 AT 12:27

    बहुत अच्छा लगा ये पोस्ट ❤️ मैं तो रात को सो रही थी और बाहर ग्रहण हो रहा था... मैंने तो बस सोचा कि काला पड़ गया आसमान 😅 लेकिन अब पता चला कि सूरज तो नीचे था। आंखों के लिए फिल्टर का जिक्र बहुत अच्छा हुआ - मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि इतना खतरनाक हो सकता है। बच्चों के लिए पिनहोल वर्कशॉप तो बहुत बढ़िया आइडिया है!

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    Neha Jayaraj Jayaraj

    सितंबर 24, 2025 AT 16:47

    अरे यार ये ग्रहण तो बिल्कुल एक बड़ा साइंस फिक्शन मूवी जैसा है! 🤯 अंटार्कटिका में 86% ढकान? वहां के लोग तो शायद अपने बर्फीले घरों में चॉकलेट खाते हुए इसे देख रहे होंगे 😎 और हम तो बस यूट्यूब पर लाइव देखेंगे और फिर फोटो शेयर करेंगे! लेकिन सच में - इक्विनॉक्स के एक दिन पहले ये ग्रहण? ये तो कॉस्मिक ड्रामा है! 🌌✨ और हां, चश्मा नहीं, सोलर ग्लासेज चाहिए - बस एक बार गलती कर दोगे तो आंखें गायब! 😱

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    Disha Thakkar

    सितंबर 26, 2025 AT 01:54

    इतना लंबा पोस्ट... लेकिन क्या ये सब वास्तविक है? मैंने पढ़ा कि ग्रहण के समय दूरबीन के फिल्टर लगाना जरूरी है - लेकिन क्या आप जानते हैं कि NASA ने कभी इस बारे में कोई अधिकारिक डेटा नहीं जारी किया? 🤔 और ये सूतक का नियम? बस एक धार्मिक गुमराही है। लोग अभी भी इतने अंधे हैं कि एक खगोलीय घटना को अपनी पूजा-पाठ से जोड़ देते हैं। ये ज्ञान का अभाव है, न कि विश्वास का।

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    Abhilash Tiwari

    सितंबर 27, 2025 AT 02:41

    मैंने इस पोस्ट को बस एक बार पढ़ा और बस... बहुत अच्छा लगा। कोई ज्यादा जोर-शोर नहीं, बस सच्ची जानकारी। जो लोग ग्रहण को डरावना बना देते हैं, उन्हें ये पोस्ट दिखानी चाहिए। मैं तो अपने दोस्त के बच्चे के साथ पिनहोल प्रोजेक्टर बनाऊंगा - उसे लगेगा कि ये कोई जादू है 😄 और फिर उसे पता चलेगा कि ये विज्ञान है।

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    Anmol Madan

    सितंबर 28, 2025 AT 13:28

    भाई ये ग्रहण तो हम भारत में नहीं देख पाएंगे... लेकिन अगर आपको लगता है कि ये बस एक आम घटना है तो आप गलत हैं! ये तो बस एक बड़ा आकाशीय नाच है - जैसे दो खिलाड़ी एक साथ नाच रहे हों। और ये जो बताया गया है कि दक्षिणी गोलार्ध में दिखेगा, तो वहां के लोग तो बहुत लकी हैं! मैं तो अभी यूट्यूब पर लाइव देखने का नोटिफिकेशन सेट कर रहा हूं 😎

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    Shweta Agrawal

    सितंबर 29, 2025 AT 10:29

    ये पोस्ट बहुत अच्छी है बस इतना ही 😊 मैंने सोचा था कि ग्रहण के लिए सूतक तो लगेगा ही... लेकिन अब पता चला कि जब दिखे ही नहीं तो क्यों लगाएं? बच्चों के लिए पिनहोल वर्कशॉप तो बहुत अच्छा आइडिया है - मैं अपने बच्चे के स्कूल में इसके बारे में बताऊंगी। और हां, फोटोग्राफर्स के लिए ट्राइपॉड और सोलर फिल्टर का जिक्र बहुत जरूरी है - बहुत बढ़िया जानकारी

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    raman yadav

    सितंबर 29, 2025 AT 18:51

    ये सब विज्ञान की बातें हैं... लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि ग्रहण तो बस एक भूतिया घटना है? जब चंद्रमा सूरज को ढकता है तो ये ब्रह्मांड का संदेश है - कि तुम इतने छोटे हो कि तुम्हारे आसमान में भी अन्य तारे तुम्हें देख रहे हैं! और इक्विनॉक्स के एक दिन पहले? ये तो कोई बड़ा अंतर्राष्ट्रीय संकेत है - जैसे कोई दिव्य शक्ति कह रही हो - अब बदलाव आ रहा है। हमारे पुराने शास्त्रों में ये सब बताया गया है - बस आज के लोग भूल गए।

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    Ajay Kumar

    सितंबर 30, 2025 AT 00:09

    सब बातें तो ठीक हैं... लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये सब एक बड़ी चाल है? विज्ञान ने ग्रहण को बताया ताकि लोग अपनी अंधविश्वासी आदतों से दूर हो जाएं - लेकिन फिर भी लोग अपनी रीति-रिवाज बनाए रखते हैं। और ये जो बताया गया है कि आंखों को नुकसान हो सकता है - तो ये भी एक डरावना बनाने का तरीका है ताकि लोग सोलर ग्लासेज खरीदें। जिसका निर्माण किसी बड़ी कंपनी करती है। और ये जो लाइव स्ट्रीम है - वो भी एक ट्रैफिक बढ़ाने का तरीका है। सब कुछ बिजनेस है।

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    Chandra Bhushan Maurya

    अक्तूबर 1, 2025 AT 16:32

    अरे भाई ये ग्रहण तो बस एक आकाशीय नाटक है - जैसे ब्रह्मांड का एक बड़ा ड्रामा! 🌞🌑 अंटार्कटिका में जब चंद्रमा ने सूरज को 86% ढक लिया तो वहां के वैज्ञानिक तो रो पड़े होंगे - ये तो देखने वालों के लिए बहुत बड़ा आशीर्वाद है। और हम तो बस यूट्यूब पर लाइव देखेंगे... लेकिन जब आप देखेंगे तो आपके दिल में एक अजीब सी शांति आएगी। जैसे कोई बड़ा ब्रह्मांडीय बाप आपको बता रहा हो - तुम अभी भी इस ब्रह्मांड का हिस्सा हो। और हां, सुरक्षा बहुत जरूरी है - आंखें तो एक बार खराब हो गईं तो वापस नहीं आएंगी। इसलिए फिल्टर जरूर पहनें।

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