जब राकेश किशोर, वकील ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पर जूता फेंकने की कोशिश की, तो कोर्ट हॉल में पूरी तरह का अराजक माहौल उत्पन्न हो गया। यह घटना 6 अक्टूबर 2025 को सुबह 11:35 बजे न्यायालय, नई दिल्ली में घटी। सुरक्षा गश्त ने तुरंत कदम उठाते हुए जूते को रोक दिया और राकेश को कोर्ट से बाहर ले गया।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच उस दिन कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई कर रही थी। लिसनिंग के दौरान राकेश ने जूता उतारा, उसे उठाया और मुख्य न्यायाधीश के मंच की ओर फेंकने का इरादा व्यक्त किया। लेकिन कोर्ट की सुरक्षा टीम ने तेजी से हस्तक्षेप किया। एक सुरक्षा कर्मी ने जूते को पकड़ लिया, जबकि दूसरा राकेश को कुतूहलपूर्ण आवाज़ में रोका।
राकेश को बाहर ले जाते समय उसने "सनातन का अपमान नहीं सहेंगे" जैसे नारे लगाए, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि उसका मकसद धार्मिक भावनाओं को लेकर था। पुलिस ने तुरंत उसे हिरासत में ले लिया और मामला दर्ज कर लिया।
यह अनोखा हमला सुप्रीम कोर्ट के सुरक्षा मानकों पर प्रश्न चिह्न लगाता है। कई विशेषज्ञों ने कहा कि कोर्ट में प्रवेश के समय बायोमेट्रिक स्कैन और वस्तु जांच पहले से ही लागू थी, फिर भी राकेश ने जूता लेकर आया।
अगले हफ्तों में सूप्रीम कोर्ट प्रशासन एक व्यापक समीक्षा करेगा, जिसमें प्रवेश पूर्व जांच, सुरक्षा कर्मियों की प्रशिक्षण, और कोर्ट हॉल में सार्वजनिक क्षेत्रों की पुनर्संरचना शामिल होगी।
घटना के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई को व्यक्तिगत रूप से फोन किया। मोदी ने कहा, "हर भारतीय इस सुबह के हमले से गहराई से चिंतित है। ऐसे कृत्य हमारे समाज में किसी भी जगह नहीं रख सकते। यह अत्यंत निंदनीय है।"
उन्होंने गवई न्यायाधीश की "धैर्य" की भी सराहना की और कहा, "मुख्य न्यायाधीश जी का यह धैर्य हमारे संविधान के मूलभूत मूल्यों को सुदृढ़ करने का प्रतीक है।"
इसी तरह की घटना पहले कभी नहीं देखी गई थी, इसलिए यह कई कानूनी प्रश्न उठाती है। क्या कोर्ट के भीतर सार्वजनिक अभिवादनों के लिए कोई विशेष कानून है? क्या इस घटना के बाद नए सुरक्षा नियमों का प्रस्ताव किया जाएगा?
वकीलों की एसोसिएशन ने कहा कि "कोर्ट की गरिमा बचाने के लिए कोई भी हिंसक कार्य बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए," जबकि कुछ धार्मिक संगठनों ने इस हमले को "संतानवादी विचारधारा के कारण" कहा।
शिक्षा संस्थानों में इस घटना पर चर्चा हो रही है, जहाँ छात्र न्यायिक प्रक्रिया की सुरक्षा और लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर बहस कर रहे हैं।
अगले कुछ महीनों में सुप्रीम कोर्ट के आधिकारिक बोटे के भीतर सुरक्षा उपायों को सख्त करने का प्रस्ताव निकलेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल पहचान, रीयल‑टाइम वीडियो विश्लेषण और अधिक सख्त प्रवेश द्रव्यमान जांच आवश्यक होगी।
साथ ही, यह घटना समाज में बढ़ती ध्रुवीकरण और न्याय प्रणाली के प्रति असंतोष को भी उजागर करती है। इसलिए, केवल सुरक्षा से नहीं, बल्कि सामाजिक संवाद को भी मजबूती से बढ़ावा देना आवश्यक है।
हाँ, 6 अक्टूबर 2025 की यह घटना भारतीय न्यायिक इतिहास में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के अंदर किसी न्यायाधीश के खिलाफ शारीरिक हमला दर्ज हुई है। पिछले किसी भी उच्च न्यायालय में भी ऐसा नहीं देखा गया।
उन्हें झिझक घातक उपदेश (उपक्रम), सार्वजनिक शांति भंग, और न्यायालय में आपराधिक कृत्य के धारा अनुसार आरोपित किया जाएगा। इस पर न्यायिक प्रक्रिया के बाद सजा तय होगी।
सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने तुरंत एक सुरक्षा ऑडिट शुरू किया है, जिसमें बायोमेट्रिक स्कैन, अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरे, और प्रवेश बिंदु पर दोहरी जाँच प्रणाली शामिल होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हमले की निंदा की और न्यायालय की गरिमा की सुरक्षा का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई कृत्य भारतीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।
यह घटना सार्वजनिक राय में न्यायिक सुरक्षा के लिए तनाव बढ़ा सकती है, साथ ही सामाजिक धर्मिक‑राजनीतिक तनाव को और गरम कर सकती है। विभिन्न समूह इस पर प्रतिक्रिया देंगे, जिससे संवाद और समझ की ज़रूरत पर ज़ोर दिया जाएगा।
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Harsh Kumar
अक्तूबर 7, 2025 AT 04:20सुप्रीम कोर्ट की सुरक्षा में सुधार आवश्यक है, इसलिए नई बायोमैट्रिक प्रोटोकॉल को तुरंत लागू किया जाना चाहिए 😊
suchi gaur
अक्तूबर 7, 2025 AT 07:06ऐसे मामूली घटना को अभिजात्य मीडिया ने अत्यधिक sensationalize किया है; असली मुद्दा प्रणालीगत असुरक्षा है।