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योगेश कथूनिया ने पेरिस पैरालंपिक्स में पुरुषों की डिस्कस थ्रो F56 में जीता रजत पदक

योगेश कथूनिया ने पेरिस पैरालंपिक्स में पुरुषों की डिस्कस थ्रो F56 में जीता रजत पदक

योगेश कथूनिया ने पेरिस पैरालंपिक्स में जीता रजत पदक

भारतीय पैराएथलीट योगेश कथूनिया ने पेरिस पैरालंपिक्स में एक और शानदार प्रदर्शन कर पुरुषों की डिस्कस थ्रो F56 इवेंट में रजत पदक जीता है। यह मुकाबला सोमवार, 2 सितंबर को स्टेड डी फ्रांस में आयोजित किया गया था। उनके द्वारा किया गया यह प्रदर्शन उनकी महान कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प का प्रमाण है।

इस प्रतियोगिता में योगेश ने अपने पहले ही प्रयास में 42.22 मीटर का थ्रो किया, जो इस सीजन का उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। छह प्रयासों में से यह उनका सबसे लंबा थ्रो था। हालांकि वे अपने इस थ्रो को बाद के प्रयासों में और नहीं बढ़ा सके। उनके इस थ्रो ने उन्हें पैरालंपिक्स का दूसरा रजत पदक दिलाया।

साथ ही, पेरिस पैरालंपिक्स में यह भारत का कुल आठवां और पैराएथलेटिक्स में चौथा पदक है। इस इवेंट में स्वर्ण पदक ब्राजील के क्लॉडिनेई बतिस्ता ने जीता, जिन्होंने 46.86 मीटर का नया पैरालंपिक रिकॉर्ड बनाया।

पिछली उपलब्धियां और संघर्ष

योगेश कथूनिया का सफर बाधाओं से भरा रहा है। 3 मार्च 1997 को बहादुरगढ़, हरियाणा में जन्मे योगेश ने बचपन में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम की समस्या का सामना किया, जिसके कारण वे दो साल तक व्हीलचेयर पर रहे। उनकी मां, मीना देवी ने उनके उपचार के लिए खुद फिजियोथेरेपी सीखी और उनके स्वस्थ होने में बड़ी भूमिका निभाई।

2016 में योगेश ने दिल्ली के किरोरीमल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान पैरास्पोर्ट्स की दुनिया में कदम रखा। जल्द ही उन्होंने डिस्कस थ्रो में अपनी प्रतिभा दिखाई और 2018 में बर्लिन में आयोजित वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स यूरोपियन चैंपियनशिप में 45.18 मीटर के थ्रो के साथ F36 श्रेणी में वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया।

पेरिस पैरालंपिक्स में योगेश के इस रजत पदक के साथ, भारत में पैरास्पोर्ट्स को भी नया प्रोत्साहन मिला है। योगेश अपनी महनत, संघर्ष, और धैर्य से युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं।

यह रजत सिर्फ एक पदक न होकर, गांव से लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक की एक अद्वितीय यात्रा का प्रतीक भी है। योगेश की इस उपलब्धि ने साबित कर दिया कि अपनी कठिनाइयों से पार पाकर भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया जा सकता है।

टैग: योगेश कथूनिया पैरालंपिक्स डिस्कस थ्रो रजत पदक

8 टिप्पणि

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    Rohit Raina

    सितंबर 3, 2024 AT 20:14
    अरे ये सब रजत पदक का धमाका तो बस media hype है। किसी ने इसके लिए कभी फंडिंग दी? नहीं। फिर भी वो लड़का खड़ा हो गया। असली जीत तो उसकी माँ की मेहनत है, जिसने फिजियो खुद सीख ली।
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    Prasad Dhumane

    सितंबर 4, 2024 AT 20:21
    ये लड़का बस एक एथलीट नहीं, एक जीवन यात्रा है। गुइलेन-बैरे सिंड्रोम के बाद व्हीलचेयर पर दो साल, फिर डिस्कस थ्रो में वर्ल्ड रिकॉर्ड, और अब पैरालंपिक्स पर रजत... ये कोई खेल नहीं, ये तो एक अद्भुत अध्याय है जो हमें सिखाता है कि असंभव का मतलब बस 'अभी तक नहीं हुआ' होता है। 🌟
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    rajesh gorai

    सितंबर 5, 2024 AT 14:30
    इसके पीछे का ऑप्टिमाइज़ेशन साइको-फिजिकल एडाप्टेशन का एक एक्सपोनेंशियल डायनेमिक्स है। बचपन के ट्रॉमा को एक एथलेटिक एनर्जी फ्लो में कन्वर्ट करना - ये तो न्यूरोप्लास्टिसिटी का अल्टीमेट डिमो है। भारत के स्पोर्ट्स सिस्टम को अब इंटीग्रेटेड रिहैबिलिटेशन मॉडल पर रिडिजाइन करना होगा।
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    Rampravesh Singh

    सितंबर 5, 2024 AT 15:39
    योगेश कथूनिया के इस अद्भुत उपलब्धि के लिए उन्हें हृदयपूर्वक बधाई। यह न केवल एक खेल की उपलब्धि है, बल्कि मानव इच्छाशक्ति का अद्वितीय उदाहरण है। भारतीय युवाओं के लिए यह एक अनमोल प्रेरणा है जो दुनिया को दिखाती है कि असमर्थता का मतलब असंभव नहीं, बल्कि अलग रास्ता है।
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    Akul Saini

    सितंबर 5, 2024 AT 16:35
    42.22 मीटर का थ्रो इस सीजन का बेस्ट था, लेकिन अगर उन्होंने दूसरे प्रयास में 43+ किया होता, तो शायद स्वर्ण भी मिल जाता। लेकिन ये बात बाद में आती है। असली बात ये है कि एक ऐसे बच्चे ने जिसके लिए चलना भी एक चैलेंज था, ने दुनिया के सामने अपनी ताकत दिखाई। ये एक व्यक्ति की जीत नहीं, एक समाज की जीत है।
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    Arvind Singh Chauhan

    सितंबर 6, 2024 AT 21:43
    कितनी बार ऐसे लोगों को देखा है जो बिना किसी सपोर्ट के अपनी लड़ाई लड़ रहे होते हैं? और फिर जब वो जीत जाते हैं, तो सब उनके पीछे आ जाते हैं। माँ ने फिजियो सीखी... लेकिन सरकार ने क्या किया? कुछ नहीं। ये पदक तो उसकी माँ का है, न कि किसी एथलेटिक अथॉरिटी का।
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    AAMITESH BANERJEE

    सितंबर 8, 2024 AT 01:54
    मुझे लगता है ये पूरी कहानी बहुत गहरी है। योगेश की माँ ने बस अपने बेटे के लिए कुछ किया, और उसने दुनिया को बदल दिया। ये बात बस एक खेल के बारे में नहीं है। ये तो एक गाँव के घर से शुरू होकर पैरालंपिक्स तक की एक यात्रा है। मैं तो बस इसके बारे में सोचता रह गया... अगर हम सब थोड़ा और अपने परिवार के लिए ऐसा करें, तो क्या होगा? 😊
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    Akshat Umrao

    सितंबर 9, 2024 AT 07:55
    बहुत अच्छा प्रदर्शन। इस तरह की कहानियाँ देखकर लगता है कि दुनिया अभी भी बदल सकती है। ❤️

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