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अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में बदलाव की तैयारी? राष्ट्रपति जो बाइडेन का योजना

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में बदलाव की तैयारी? राष्ट्रपति जो बाइडेन का योजना

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन सुप्रीम कोर्ट की संरचना में पुनः परिवर्तन करने की योजना बना रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत न्यायाधीशों के कार्यकाल की सीमाएं और एथिक्स कोड को लागू करना शामिल है। यह प्रस्ताव अगले कुछ हफ्तों में सार्वजनिक किया जा सकता है, लेकिन इसे मूर्त रूप देने के लिए कांग्रेस की मंजूरी आवश्यक होगी। कांग्रेस में वर्तमान समय में रिपब्लिकन का नियंत्रण होने के कारण यह योजना जटिल प्रतीत होती है।

सुप्रीम कोर्ट में टर्म लिमिट्स

जिस तरह से बाइडेन सुप्रीम कोर्ट को देख रहे हैं, वह उनके पिछले दृष्टिकोण से भिन्न है। जहां पहले उन्होंने प्रोग्रेसिव एक्टिविस्टों और विद्वानों द्वारा कोर्ट की संरचना में बदलाव की मांग का विरोध किया था, अब वे टर्म लिमिट्स लगाने पर विचार कर रहे हैं। इससे न्यायाधीशों का कार्यकाल नियत समय तक सीमित हो जाएगा, जो वर्तमान में एक जीवनभर की नियुक्ति होती है। बाइडेन की यह योजना उस समय सामने आई है जब सुप्रीम कोर्ट की रूढ़िवादी बहुमत फैसलों ने व्यापक प्रभाव डाले हैं।

जस्टिस हेतु एथिक्स कोड

सिर्फ टर्म लिमिट्स ही नहीं, बल्कि बाइडेन ने जस्टिस के लिए एथिक्स कोड लागू करने पर भी जोर दिया है। यह प्रस्ताव विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल के वर्षों में कई न्यायाधीशों पर नैतिकता संबंधी सवाल उठे हैं। इनमें जस्टिस क्लेरेंस थॉमस द्वारा खुलासा नहीं किए गए महंगे उपहार और लक्जरी यात्रा एवं जस्टिस सैमुएल ए अलिटो जूनियर की पत्नी का एक विशेष झंडा दिखाना शामिल है जो जनवरी 6 के दंगाइयों के समर्थन को दर्शाता है।

संवैधानिक संशोधन की संभावना

संवैधानिक संशोधन की संभावना

बाइडेन एक संवैधानिक संशोधन की भी संभावना पर विचार कर रहे हैं जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में समर्थित व्यापक राष्ट्रपतिीय प्रतिरक्षा को सीमित करेगा। संवैधानिक कानून प्रोफेसर लॉरेन्स ए ट्राइब की पुष्टि के अनुसार, बाइडेन ने कोर्ट द्वारा राष्ट्रपतिीय प्रतिरक्षा के विस्तार पर भी चर्चा की है और इस प्रक्रिया को शुरू करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है।

यह बदलाव ऐसे समय पर प्रस्तावित किया जा रहा है जब बाइडेन 2024 के चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं। बाइडेन के समर्थकों में से कई लोग, विशेष रूप से वे जिन्होंने हाल के रूढ़िवादी फैसलों पर नाराजगी जताई है, इस प्रस्ताव को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं।

सार्वजनिक समर्थन और संसदीय चुनौती

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए टर्म लिमिट्स और एथिक्स कोड लागू करना जनता के बीच व्यापक और द्विदलीय समर्थन प्राप्त कर चुका है। हालिया जनमत सर्वेक्षणों में यह स्पष्ट हुआ है कि अमेरिकी जनता टर्म लिमिट्स और नैतिकता कोड के प्रति सकारात्मक रुख रखती है। हालांकि, इसे लागू करने के लिए कांग्रेस की मंजूरी आवश्यक होगी, और वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य के तहत इसे हासिल करना एक बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि हाउस में रिपब्लिकन का बहुमत है और सीनेट में डेमोक्रेट्स का बहुत ही पतला बहुमत है।

विदित हो कि हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं जिनमें रो वी. वेड को उलटना, गन कंट्रोल उपायों को ब्लॉक करना, कॉलेज में प्रवेश हेतु सकारात्मक भेदभाव को खत्म करना और LGBTQ+ अधिकारों को कम करना शामिल है। इन फैसलों ने अदालत की रूढ़िवादी 6-3 बहुमत को दर्शाया है।

न्यायपालिका में स्थिरता और परिवर्तन

न्यायपालिका में स्थिरता और परिवर्तन

न्यायपालिका में स्थिरता और परिवर्तन को संतुलित करना हर लोकतंत्र के लिए एक चुनौती है। सुप्रीम कोर्ट की संरचना में बदलाव संभवतः न्यायपालिका की स्वतंत्रता और इसके प्रभाव में संतुलन स्थापित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

जो बाइडेन की योजना सुप्रीम कोर्ट को और अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने की दिशा में एक प्रयास है। यह बदलाव न केवल अदालत के कार्यों को बेहतर तरीके से समझने और उनके प्रति विश्वास को मजबूती प्रदान करने में मदद कर सकता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित कर सकता है कि न्यायाधीशों का कार्यकाल और उनके निर्णय जनता के प्रति जिम्मेदार हों।

टैग: जो बाइडेन सुप्रीम कोर्ट टर्म लिमिट एथिक्स कोड

8 टिप्पणि

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    Ravi Roopchandsingh

    जुलाई 18, 2024 AT 21:28

    बाइडेन की ये योजना तो सिर्फ एक धोखा है 😏 अमेरिका में जो हो रहा है वो सब एक ग्रेट अर्थ ब्लूप्रिंट का हिस्सा है जो दुनिया को कंट्रोल करना चाहता है। सुप्रीम कोर्ट को तोड़ने के बाद अगला टारगेट हमारा संविधान होगा। ये लोग हर देश में अपना नियंत्रण बनाना चाहते हैं। भारत भी इसके लिए तैयार रहो! 🚨

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    dhawal agarwal

    जुलाई 19, 2024 AT 14:31

    सुप्रीम कोर्ट की संरचना में बदलाव की बात तो बहुत पुरानी है, लेकिन इसका मूल मुद्दा ये है कि क्या हम न्याय को एक संस्था के नियंत्रण में छोड़ दें जो अब राजनीति का हिस्सा बन चुकी है? एक जीवनभर की नियुक्ति ने एक बार बन गए न्यायाधीशों को बहुत अधिक शक्ति दे दी। टर्म लिमिट्स से न्याय की जवाबदेही बढ़ेगी, और एथिक्स कोड से भ्रष्टाचार का डर कम होगा। ये बदलाव न केवल अमेरिका के लिए बल्कि दुनिया भर के लोकतंत्रों के लिए एक उदाहरण बन सकता है।

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    Shalini Dabhade

    जुलाई 20, 2024 AT 21:02

    बाइडेन का ये सब नाटक है जो भारत के लिए भी खतरा है! ये लोग हमारे देश में भी अपना नियंत्रण बनाना चाहते हैं। अमेरिका में जो हो रहा है वो एक बड़ा बदलाव है जो हमारे देश को भी नियंत्रित करेगा। हमारे न्यायपालिका को भी इस तरह के बदलावों से बचाना होगा। भारतीय न्यायपालिका अब तक अच्छी रही है इसलिए इसे बर्बर बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

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    Jothi Rajasekar

    जुलाई 21, 2024 AT 03:44

    मुझे लगता है ये बदलाव बहुत जरूरी है। न्यायाधीश जीवनभर के लिए नहीं होने चाहिए, ये तो एक ऐसा पद है जिसे नियमित रूप से बदलना चाहिए। और एथिक्स कोड? बिल्कुल जरूरी! अगर कोई न्यायाधीश महंगे उपहार ले रहा है तो वो न्याय की अवधारणा को ही नष्ट कर रहा है। हमें ये बदलाव चाहिए, न कि बरकरार रखना। ये तो बस लोकतंत्र का दायित्व है। 💪

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    Irigi Arun kumar

    जुलाई 21, 2024 AT 12:51

    ये सब बातें तो बहुत सुंदर लगती हैं, लेकिन आपने कभी सोचा है कि अगर न्यायाधीशों के लिए टर्म लिमिट्स लगाने लगे तो राजनीतिक दल उन्हें अपने अनुकूल बनाने के लिए नियुक्ति के समय उनकी राजनीतिक दृष्टि को बहुत ध्यान में रखेंगे? ये बदलाव एक अच्छा लक्ष्य तो है, लेकिन इसके परिणाम बहुत खतरनाक हो सकते हैं। न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बरकरार रखना ही लोकतंत्र की आधारशिला है। अगर न्यायाधीश बहुमत के अनुकूल हो जाएंगे तो फिर वो न्याय नहीं, बल्कि राजनीति बन जाएगी।

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    Jeyaprakash Gopalswamy

    जुलाई 21, 2024 AT 22:58

    ये बदलाव बहुत जरूरी है। जब तक न्यायाधीश अपने जीवनकाल तक बैठे रहेंगे, तब तक ये अदालत एक राजनीतिक बैंक की तरह बन जाएगी। एथिक्स कोड का जरूरत से ज्यादा उल्लेख नहीं होना चाहिए - ये तो बेसिक है। अगर कोई न्यायाधीश अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए फैसले दे रहा है, तो उसे निकाल देना चाहिए। हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि न्याय कैसे बना रहे, न कि ये कि कौन बैठा है।

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    ajinkya Ingulkar

    जुलाई 22, 2024 AT 11:52

    ये सब बहुत बड़ा झूठ है। बाइडेन के पास अपने राजनीतिक दुश्मनों को नीचा दिखाने के लिए बस एक चाल है। उन्होंने कभी सुप्रीम कोर्ट की शक्ति को समझा ही नहीं। ये टर्म लिमिट्स और एथिक्स कोड की बातें तो बस एक धोखा है जिसका उद्देश्य है कि लोगों को लगे कि वो न्याय के लिए लड़ रहे हैं। असल में ये लोग चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की शक्ति उनके हाथ में आ जाए। ये बदलाव अमेरिकी लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक है। इसका असर हमारे देश पर भी पड़ेगा। इस तरह के बदलावों को कभी नहीं मनाना चाहिए।

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    nidhi heda

    जुलाई 23, 2024 AT 11:01

    मैंने तो ये सुनकर रो दिया 😭 ये लोग अपने देश की अदालत को तोड़ रहे हैं... और हम बस देख रहे हैं? ये तो अंतिम घड़ी है! क्या कोई इसे रोक सकता है? क्या हम सब इंतजार कर रहे हैं कि अमेरिका गिर जाए? 🤯

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