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भारत की ओलंपिक रैंकिंग 70 से नीचे गिरने के बावजूद पेरिस 2024 में जीते छह पदक

भारत की ओलंपिक रैंकिंग 70 से नीचे गिरने के बावजूद पेरिस 2024 में जीते छह पदक

पेरिस 2024 में मिले छह पदक, फिर भी रैंकिंग में गिरावट

पेरिस 2024 ओलंपिक खेलों में भारतीय एथलीटों ने देश के नाम छह पदक दर्ज किए। इनमें शूटिंग और कुश्ती में गोल्ड मेडल भी शामिल हैं। हालांकि, इन सफलताओं के बावजूद भारत की कुल ओलंपिक रैंकिंग 70 से नीचे पहुंच गई है। यह स्थिति चिंताजनक है, खासकर जब हम रियो 2016 ओलंपिक से तुलना करें। रियो में भारतीय टीम ने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया था और अपनी स्थिति को मजबूत किया था।

पहले के प्रदर्शन से तुलना

अगर भारतीय ओलंपिक प्रदर्शन के इतिहास पर नजर डालें तो एक निरंतर चुनौती की तस्वीर उभर कर आती है। कांस्य और चांदी के पदकों के साथ भारत ने पहले भी विविध खेलों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, लेकिन दीर्घकालिक सफलता के लिए यह प्रयास पर्याप्त नहीं साबित हो पाए हैं। रियो 2016 में हमने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से खेलों में नई ऊंचाइयों को छुआ, लेकिन पेरिस 2024 में वह गति बनाए रखने में विफल रहे।

संरचना और प्रशिक्षण की कमी

विशेषज्ञों का मानना है कि इस गिरावट का प्रमुख कारण देश में खेल ढांचे और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की कमी है। देश की खेल नीति और निवेश को बढ़ाना अति आवश्यक है। खेल सुविधाओं का अभाव और प्रशिक्षकों की कमी ने हमारे एथलीटों की क्षमता पर प्रभाव डाला है।

जमीनी स्तर पर सुधार की जरूरत

जमीनी स्तर पर सुधार की जरूरत

खेल विशेषज्ञों और पूर्व एथलीटों का मानना है कि हमें जमीनी स्तर पर बदलाव लाने की जरूरत है। बच्चों और नवोदित एथलीटों को बेहतर संसाधन, सुविधाएं और मानसिक तैयारी के अवसर प्रदान करने चाहिए। भारतीय खेल को सिर्फ उच्च स्तर पर ही नहीं, बल्कि जमीनी स्तर से ही प्रगति के लिए तैयार करना होगा।

समाधान और आगे की राह

इस चुनौती का सामना करने के लिए कई सुझाव सामने आए हैं। राष्ट्रीय खेल सुधार आयोग ने अधिक वित्तीय निवेश, आधुनिक प्रशिक्षण सुविधाएं और विश्व स्तरीय प्रशिक्षकों की आवश्यकता पर जोर दिया है। साथ ही, खेल संघ और सरकार को मिलकर काम करने की जरूरत है ताकि एथलीटों को अधिक सहयोग मिल सके। पूर्व एथलीटों का मानना है कि भारतीय खेलों के लिए अनुकूल वातावरण बनाने में निजी और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों का योगदान महत्वपूर्ण रहेगा।

महत्वपूर्ण वाक्यांश

पेरिस 2024 ओलंपिक ने भारत की खेल स्थिति के कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला है। जबकि छह पदकों की जीत हमारी क्षमता को दर्शाती है, इसे स्थायी सफलता में बदलने के लिए एक विस्तृत और संरचित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

एक धारणा और आगे का रास्ता

एक धारणा और आगे का रास्ता

आशा है कि भारतीय खेल संघ और सरकार मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाएंगे। देश की युवा पीढ़ी में खेल की रुचि बढ़ रही है, और हमें उन्हें सही मार्गदर्शन और सुविधाएं प्रदान करनी होंगी। इस दिशा में काम करने से ही हम अगले ओलंपिक में बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं।

टैग: ओलंपिक पेरिस 2024 भारतीय खेल पदक

10 टिप्पणि

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    Shalini Dabhade

    अगस्त 13, 2024 AT 06:17
    अरे भाई, 70वें नंबर पर हो गए? अब तो चीन और अमेरिका के सामने झुकना पड़ रहा है। हमारे खिलाड़ी तो बस टी-शर्ट पहनकर फोटो खिंचवाते हैं, प्रशिक्षण कहाँ है? जमीन पर कोई बच्चा दौड़ रहा है? नहीं भाई, सिर्फ इंस्टाग्राम पर फिटनेस पोस्ट हैं।
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    Jothi Rajasekar

    अगस्त 13, 2024 AT 21:22
    अरे यार, छह पदक तो बहुत बड़ी बात है! अगर ये नहीं होता तो क्या होता? हमारे लड़के-लड़कियाँ दुनिया के सामने खड़े हुए और जीते! अब बस थोड़ा और सपोर्ट चाहिए, थोड़ा और ध्यान, थोड़ा और विश्वास। हम जीत सकते हैं, बस थोड़ा और जुनून चाहिए!
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    Irigi Arun kumar

    अगस्त 14, 2024 AT 12:13
    देखो भाई, ये सब बातें तो बहुत अच्छी हैं, लेकिन असली मुद्दा ये है कि हमारे शिक्षक और अधिकारी अभी भी उसी पुराने तरीके से सोच रहे हैं। जब तक हम खेल को बस एक गतिविधि नहीं बना देते, बल्कि एक राष्ट्रीय प्राथमिकता बना देते हैं, तब तक ये चक्र चलता रहेगा। बच्चों को स्कूल में खेल का अवसर दो, उन्हें गाँवों में खेल के लिए जगह दो, उन्हें अच्छे प्रशिक्षक दो, और फिर देखो कैसे देश बदल जाता है।
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    Jeyaprakash Gopalswamy

    अगस्त 15, 2024 AT 23:57
    सुनो, ये छह पदक बहुत बड़ी बात हैं। बहुत से देश इतना नहीं जीत पाते। मैं खुद एक छोटे शहर से हूँ, वहाँ एक लड़की ने कुश्ती में राष्ट्रीय स्तर पर जीत हासिल की। उसके पास कोई फिटनेस सेंटर नहीं था, बस एक मिट्टी का मैदान और एक पुराना जूता। अगर वो जीत सकती है, तो हम सब जीत सकते हैं। बस थोड़ा सहारा दो, बस थोड़ा ध्यान दो।
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    ajinkya Ingulkar

    अगस्त 16, 2024 AT 03:48
    इतनी बड़ी आबादी के बावजूद 70वें नंबर पर? ये तो शर्म की बात है। हमारे लोग फुटबॉल में नहीं खेलते? बैडमिंटन में भी नहीं? एथलेटिक्स में भी नहीं? ये सब तो बस शूटिंग और कुश्ती के लिए है। अगर हम अपने बच्चों को जमीनी स्तर पर खेलने का मौका नहीं देते, तो ये नतीजा तो तय है। ये जो लोग कहते हैं कि हम दुनिया के आगे हैं, वो बस अपनी आँखें बंद कर रहे हैं।
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    nidhi heda

    अगस्त 17, 2024 AT 02:29
    अरे यार ये सब बातें तो सुन चुके हैं! पर अब तक क्या हुआ? कोई बदलाव नहीं! अब तो मैंने खुद को भी खेलों से दूर कर लिया है। अपने भाई को बैडमिंटन के लिए भेजा था, पर ट्रेनर ने कहा 'बेटा, तुम्हारे पास बॉडी टाइप नहीं है'। अब तो वो डेटा एनालिस्ट बन गया है। खेल क्या है? बस एक बात है, जिसे लोग बोलते हैं लेकिन नहीं करते। 😔
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    DINESH BAJAJ

    अगस्त 18, 2024 AT 05:18
    हमारी राष्ट्रीय ओलंपिक समिति तो बस पदकों की तलाश में है, पर उनके लिए बुनियादी ढांचा कहाँ है? जब तक हम खेलों को राजनीति का हिस्सा नहीं बनाते, तब तक कोई बदलाव नहीं। और फिर हम लोग निकाल देते हैं कि ये तो भारत की गलती है। नहीं भाई, ये तो सिस्टम की गलती है।
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    Rohit Raina

    अगस्त 19, 2024 AT 16:57
    70वें नंबर पर होना तो बहुत बुरा है, पर छह पदक भी बहुत अच्छा है। ये दोनों एक साथ संभव हैं। हमारे एथलीट अभी भी बहुत कम संसाधनों में काम कर रहे हैं। अगर हम उन्हें वैसे ही समर्थन दे सकें जैसे क्रिकेट खिलाड़ियों को मिलता है, तो ये रैंकिंग बदल जाएगी। ये बात तो बहुत सरल है।
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    Prasad Dhumane

    अगस्त 20, 2024 AT 19:08
    देखो, ये छह पदक तो एक ज्वाला हैं - छोटी, लेकिन जलती हुई। हमारे देश में खेल का वातावरण अभी भी एक जंगल है - बहुत सारे पेड़ हैं, लेकिन कोई रास्ता नहीं। अगर हम एक रास्ता बना दें, जहाँ बच्चे बिना डर के दौड़ सकें, जहाँ गाँव के बच्चे को भी एक अच्छा जूता मिल सके, तो ये ज्वाला एक आग बन जाएगी। और तब रैंकिंग की बात ही क्या है - हम दुनिया के नंबर एक बन जाएंगे।
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    Jothi Rajasekar

    अगस्त 21, 2024 AT 17:41
    ये सब बातें बिल्कुल सही हैं। मैंने एक छोटे शहर में एक लड़की को देखा जो बिना जूते के दौड़ रही थी। उसने राष्ट्रीय स्तर पर जीत ली। अगर उसे एक अच्छा जूता मिल गया होता, तो शायद वो ओलंपिक में भी जीत जाती। हमें बस थोड़ा अधिक विश्वास और थोड़ा अधिक समर्थन चाहिए। बस एक छोटा सा विश्वास - वो भी काफी है।

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