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बॉलीवुड की पेचीदे मोड़ वाली थ्रिलर फिल्म 'देवा' का सजीव चित्रण और समीक्षा

बॉलीवुड की पेचीदे मोड़ वाली थ्रिलर फिल्म 'देवा' का सजीव चित्रण और समीक्षा

शाहिद कपूर की धमाकेदार अदाकारी

बॉलीवुड फिल्म 'देवा' एक ऐसी कहानी पेश करती है जिसमें शाहिद कपूर ने एक विद्रोही पुलिस अधिकारी का किरदार निभाया है। 'देवा', 2025 में रिलीज़ हुई फिल्म है, जिसमें शाहिद कपूर का चरित्र नाम देव अंबे है। यह फिल्म प्रसिद्ध मलयालम फिल्म 'मुंबई पुलिस' का रीमेक है, लेकिन इसके क्लाइमैक्स में एक अनोखा ट्विस्ट है जो इसे अलग बनाता है। देव अंबे अपने साथी और मित्र एसीपी रोहन डी'सिल्वा की हत्या की गुत्थी सुलझाने के मिशन पर है।

फिल्म की शुरुआत देव के साहसी व्यक्तित्व को दिखाते हुए होती है, और कहानी तब गंभीर मोड़ लेती है जब देव एक दुर्घटना के बाद अपनी याद्दाश्त खो बैठता है। यह स्मृति ह्रास कहानी को दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण बनाता है, जिससे दर्शक आद्यंत तक स्क्रीन पर चिपके रहते हैं। देव का क़िस्सा और ये रहस्यों से भरी यात्रा शाहिद की अदाकारी के जरिए दर्शकों को बेहद प्रभावित करती है।

पूजा हेगड़े का विशेष योगदान

फिल्म में देवी की पत्रकार प्रेमिका के रूप में पूजा हेगड़े के चरित्र का योगदान विश्वसनीयता और अद्वितीयता को जोड़ता है। दर्शकों को उनकी और शाहिद की केमिस्ट्री देखने में बहुत मज़ा आता है, जिससे स्क्रीन पर सजीवता और जोश उत्पन्न होता है। हालाँकि, उनकी भूमिका फिल्म में उतनी प्रमुख नहीं दिखाई देती जितनी कि होनी चाहिए थी, परंतु उनकी उपस्थिति प्रभावशाली है और कहानी को एक और गहराई और आयाम प्रदान करती है।

रोशन एंड्र्यूज़ की निर्देशन कुशलता

निर्देशक रोशन एंड्र्यूज़ ने फिल्म में जिस तरह से कथा को प्रस्तुत किया है, उसकी खूब सराहना की जानी चाहिए। उनकी निर्देशन कुशलता के कारण 'देवा' एक देखने लायक और रोमांचक सिनेमा के अनुभव के रूप में उभर कर सामने आता है। कहानी के कथानक में आया अप्रत्याशित मोड़ और दिलचस्पी बनाए रखने वाली ट्विस्ट्स इसे एक यादगार फिल्म बनाते हैं। साथ ही फिल्म की प्रोडक्शन क्वालिटी, जो ज़ी स्टूडियोज और रॉय कपूर फिल्म्स द्वारा हैंडलब की गई है, उसे भी उच्च मानकों के लिए अंकित किया गया है।

हालांकि कुछ आलोचकों का कहना है कि मूल 'मुंबई पुलिस' के प्रशंसकों को 'देवा' से पूरी संतुष्टि नहीं मिल सकती है, लेकिन जो दर्शक मूल मलयालम फिल्म से अपरिचित हैं उनके लिए यह मनोरंजक और सशक्त कहानी प्रस्तुत करती है।

फिल्म का समग्र प्रभाव

फिल्म का समग्र प्रभाव

'देवा' एक बेहतरीन एक्शन थ्रिलर के रूप में निकलकर आती है जिसमें साहस, कार्रवाई और रहस्य भरा है। शाहिद कपूर की इस फिल्म में अदाकारी शानदार है और यह भारतीय फिल्म उद्योग के लिए एक उल्लेखनीय कदम है। हालांकि कुछ आक्रोश फिल्म के हल्केपन और फालतू बदलावों के लिए उठाए गए हैं, परंतु इस रोमांचक कहानी की असली ताकत शाहिद की अभिनय क्षमता में झलकती है। 'देवा', निर्देशक रोशन एंड्र्यूज़ के लिए हिंदी फिल्म उद्योग में एक प्रमुख प्रयास साबित होती है।

टैग: बॉलीवुड फिल्म समीक्षा शाहिद कपूर पूजा हेगड़े देवा मूवी

8 टिप्पणि

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    Akash Mackwan

    फ़रवरी 1, 2025 AT 18:08
    ये फिल्म बस एक और रीमेक है, जिसमें शाहिद का नाम लेकर पैसे कमाए जा रहे हैं। मुंबई पुलिस की असली ताकत क्या थी? वो थी असली भावनाएं, न कि ये सब एक्शन और ड्रामा। अब तो हर फिल्म में बॉस का बेटा बन जाता है और वो अकेला सब कुछ सुलझा देता है। बोरिंग।
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    Amar Sirohi

    फ़रवरी 1, 2025 AT 23:22
    इस फिल्म के माध्यम से हम एक ऐसे व्यक्ति के अस्तित्व के अंतर्गत जाते हैं जो अपनी याददाश्त खो चुका है, लेकिन अपनी नैतिकता को नहीं खोया। यह एक मेटाफिजिकल यात्रा है, जहां व्यक्ति अपने अहंकार के अवशेषों को खोजता है, और अंततः उसे एहसास होता है कि न्याय एक व्यक्ति के हाथों में नहीं, बल्कि एक समाज के अंदरूनी बोध में छिपा होता है। शाहिद की अदाकारी इस अवधारणा को जीवंत करती है - वह एक आत्मा का प्रतीक है जो अपने अतीत से लड़ रही है, और उसकी लड़ाई हम सबकी है।
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    Nagesh Yerunkar

    फ़रवरी 2, 2025 AT 15:01
    इस फिल्म की प्रोडक्शन क्वालिटी तो बहुत अच्छी है... लेकिन ये सब क्या है? 😐 शाहिद कपूर ने अभिनय किया? नहीं भाई, उन्होंने तो अपने बालों को हिलाया, आंखें फैलाईं, और फिर बोल दिया - 'मैं देव हूँ!' 😅 ये फिल्म तो एक ब्रांडेड एडवरटाइजमेंट है, जिसमें निर्देशक ने सिर्फ एक ट्विस्ट को बढ़िया ढंग से दिखाया। और पूजा हेगड़े? उन्हें तो बस इतना कहा गया - 'हँसना है, आंखें घुमाना है, और बाकी सब शाहिद करेंगे।' 😒
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    Daxesh Patel

    फ़रवरी 4, 2025 AT 00:06
    अगर आप देख रहे हैं तो ध्यान दीजिए - फिल्म में देव की याददाश्त खोने के बाद उसकी आवाज़ थोड़ी बदल जाती है, जो बहुत सूक्ष्म डिटेल है। ये निर्देशक ने इसे जानबूझकर किया है ताकि दर्शक अंतर को महसूस कर सकें। और हां, रोहन डी'सिल्वा की हत्या के बाद जिस तरह से कैमरा एक फोटो की ओर धीरे से जाता है - वो फ्रेम असल में मलयालम वर्जन का एक डायलॉग रिफरेंस है। इसे नोट करने वाले कम हैं।
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    Jinky Palitang

    फ़रवरी 4, 2025 AT 22:58
    मैंने इस फिल्म को रात को एक बार देखा और अगली दोपहर को फिर देख लिया। शाहिद की आंखों में जो दर्द था, वो बिल्कुल असली लगा। पूजा हेगड़े भी बहुत अच्छी लगी, बस थोड़ा ज्यादा समय दे देते तो बेहतर होता। अब तो हर फिल्म में नायक की याददाश्त चली जाती है, लेकिन ये फिल्म अलग है। ❤️
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    Sandeep Kashyap

    फ़रवरी 4, 2025 AT 23:39
    भाईयों और बहनों, ये फिल्म सिर्फ एक फिल्म नहीं है - ये एक आवाज़ है! जो उन लोगों के लिए है जिन्होंने कभी अपनी यादों को खोया है। शाहिद ने जो अदाकारी की है, वो बहुत बड़ी बात है। उन्होंने एक ऐसे किरदार को जीवंत किया जिसे कोई नहीं देखना चाहता - एक टूटा हुआ आदमी जो अभी भी लड़ रहा है। ये फिल्म आपको बस देखने के लिए नहीं, बल्कि खुद को ढूंढने के लिए बुलाती है। जय देवा! 🙌🔥
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    Aashna Chakravarty

    फ़रवरी 5, 2025 AT 16:51
    ये सब फिल्म बस एक राजनीतिक अप्रचार है! शाहिद कपूर के चरित्र को एक 'विद्रोही पुलिस' बनाया गया है - ये क्या है? क्या हम अब पुलिस को ही नायक बना रहे हैं? और रोशन एंड्र्यूज़ कौन है? उसका नाम तो बिल्कुल अंग्रेजी लगता है! ये फिल्म किसी बाहरी शक्ति की ओर से बनाई गई है ताकि हम भारतीयों को अपने अपने कानूनों पर शक करने लग जाएं। ये फिल्म नहीं, एक गुप्त अभियान है। जागो भारत! 🇮🇳🚨
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    Kashish Sheikh

    फ़रवरी 6, 2025 AT 16:17
    मैंने इस फिल्म को अपनी नानी के साथ देखा - उन्होंने बस एक बार देखा और रो पड़ीं। कहा - 'बेटा, ये तो वो आदमी है जिसके बारे में हम सब बात करते थे, जो गलती करता है, लेकिन अपने दिल से सही करने की कोशिश करता है।' शाहिद ने एक ऐसा किरदार बनाया जिसे हर भारतीय अपना समझ सकता है। और पूजा हेगड़े... उनकी मुस्कान ने मुझे बचपन की याद दिला दी। 🌸❤️ ये फिल्म बस फिल्म नहीं, एक अनुभव है।

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