दक्षिण कोरिया के लिए यह क्षण निश्चय ही ऐतिहासिक और विघटनकारी था जब राष्ट्रपति यून सुक योल द्वारा 3 दिसंबर 2024 को मार्शल लॉ की घोषणा हुई। यह मार्चिंग का फैसला अनेक लोगों के लिए अचानक और अप्रत्याशित रूप में सामने आया। पिछले लगभग चार दशकों के बाद दुनिया के सबसे जीवंत लोकतांत्रिक देशों में से एक के आधुनिक इतिहास में ऐसी घोषणा का कोई पहले उदाहरण नहीं था। यह निर्णय 'राज्य विरोधी बलों' और उत्तर कोरियाई हमदर्दियों द्वारा देश की सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखा गया। परंतु प्रश्न उठता है कि क्या वास्तव में इन तथाकथित 'खतरों' का कोई वास्तविक और प्रमाणिक आधार था, या यह निर्णय सिर्फ एक राजनीतिक गणना थी।
मार्शल लॉ घोषणा के बाद, दक्षिण कोरिया के राजधानी में संसद के चारों ओर सैनिकों का जमावड़ा हुआ। यह रातभर का समय देश के आम नागरिकों के लिए भयपूर्ण रहा, जो अचानक अपने देश के भविष्य के लिए अनिश्चितता में थे। देश के राजनीतिज्ञ, यहां तक कि राष्ट्रपति यून के अपने ही दल के सदस्य, इस कदम के खिलाफ खड़े हुए। कानून और न्याय पर सवाल उठाते हुए इसे 'अवैध और असंवैधानिक' कहा गया। विरोधियों ने इस तानाशाही भरे कदम को सख्ती से अस्वीकार कर दिया। रात के दौरान ही तेजी से संसदीय सत्र आयोजित किया गया और इसके परिणामस्वरूप मार्शल लॉ की स्थिति को हटाने के लिए मतदान हुआ, जिसके चलते यून को अपनी घोषित स्थिति को केवल छह घंटे बाद ही वापस लेना पड़ा।
यह घटना केवल एक आपातकाल स्थिति नहीं थी; इसने राष्ट्रपति यून की राजनीतिक जटिलताओं पर भी प्रकाश डाला। यून की प्रशासनिक कार्यप्रणाली की आलोचना उनके राजनीतिक गतिरोध और हाल ही में उनके अपने और उनकी पत्नी के मामले में विवादों ने की है। इसलिए यह कदम उनके बढ़ते दबाव और कम हो रहे जन समर्थन का परिणाम माना जा रहा है। उनके ख़िलाफ़ कई आरोप लगे, जिसमें प्रभावकारी सौदों जैसा गंभीर आरोप शामिल है। हालांकि, यून ने इन सभी आरोपों को खारिज किया। इसके बावजूद, इन घटनाओं ने उनके प्रशंसा स्तर को गंभीर रूप से घटाया है।
मार्शल लॉ की घोषणा के इस अचानक निर्णय के खिलाफ संसद की त्वरित प्रतिक्रिया ने एक बार फिर साबित कर दिया कि दक्षिण कोरिया का लोकतंत्र कितना सशक्त और मजबूती से स्थापित है। यह घटना जहां एक ओर लोकतंत्र की मजबूती को दर्शाती है, वहीं दूसरी ओर यह भी उजागर करती है कि राष्ट्रपति यून के नेतृत्व को किस प्रकार के राजनीतिक तनावों और चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। दक्षिण कोरिया में यद्यपि लोकतांत्रिक प्रणाली मजबूत रूप से स्थापित है, परंतु राजनीतिक तनाव और विभाजन के इस दौर में यह घटना भविष्य की राजनीतिक स्थिरता के प्रति गंभीर संकेत देती है। ऐसी घटनाओं के परिणामस्वरुप देश के नागरिकों में अपने नेतृत्व पर विश्वास संकट को बढ़ावा मिलने की संभावना रहती है।
इस घटना के प्रभाव केवल तत्काल सामाजिक और राजनीतिक स्थिति तक सीमित नहीं रहेंगे। इसका असर योन की भविष्य की योजनाओं और नीतियों पर भी पड़ सकता है। देश के राजनीतिक परिदृश्य में उत्पन्न हुए इस संकट ने यह भी सुनिश्चित कर दिया है कि आने वाले चुनावों में इस विषय का व्यापक स्तर पर जिक्र होगा और चिंतन किया जाएगा। यह देखना रोचक होगा कि इस तरह की घटनाएं कैसे राजनीतिक दृष्टि से प्रशासन और जनता की अपेक्षाओं को पुनर्परिभाषित करती हैं और दक्षिण कोरियाई समाज कैसे भविष्य में इन चुनौतियों का सामना करता है।
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