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गुजरात में संदिग्ध चांडीपुरा वायरस संक्रमण से छह बच्चों की मौत

गुजरात में संदिग्ध चांडीपुरा वायरस संक्रमण से छह बच्चों की मौत

गुजरात में संदिग्ध चांडीपुरा वायरस की दस्तक

गुजरात राज्य में संदिग्ध चांडीपुरा वायरस (Chandipura Virus) संक्रमण से छह बच्चों की मौत हो गई है। सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में कुल 12 संदिग्ध मामले पाए गए हैं। इनमें से चार मामले साबरकंठा जिले से, तीन अरावली से, एक महिसागर, एक खेड़ा, और दो राजस्थान से हैं। एक मामला मध्य प्रदेश से भी प्रकाश में आया है। उल्लेखनीय है कि इन सभी मरीजों का इलाज गुजरात में ही किया गया था।

वायरस का स्रोत और संक्रमण का कारण

चांडीपुरा वायरस, र्हाब्दोविरिडे (Rhabdoviridae) परिवार का एक वायरस है, जो संधिप्राणियों (sandflies) और मच्छरों के काटने के माध्यम से फैलता है। यह वायरस बच्चों विशेष रूप से 15 साल से कम उम्र के बच्चों को तेजी से प्रभावित करता है और संक्रमण के 24-48 घंटे के भीतर मृत्यु का कारण बन सकता है। इस संक्रमण में मस्तिष्क की सूजन (encephalitis) मुख्य लक्षणों में से एक है।

प्रमुख लक्षण और उपचार

प्रमुख लक्षण और उपचार

पिछली जांचों के अनुसार, संक्रमित बच्चों में श्वसन संबंधी परेशानी, रक्तस्राव की प्रवृति, और अनीमिया जैसी समस्याएँ देखने को मिली हैं। वर्तमान में इस वायरस के लिए कोई विशेष एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी या टीका उपलब्ध नहीं है, जिससे इस संक्रमण का मुकाबला करने के लिए मस्तिष्क की सूजन को नियंत्रित करना अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।

ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में वायरल का प्रकोप

अधिकतर चांडीपुरा वायरस के प्रकोप उन ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में देखे जाते हैं जहां संधिप्राणियों की संख्या अधिक होती है। विशेषकर मानसून के दौरान संधिप्राणियों की संख्या में वृद्धि हो जाती है, जिससे संक्रमण के मामले भी बढ़ जाते हैं। गुजरात में वर्तमान प्रकोप में संधिप्राणियों के पाए जाने के ऊंचाई वाले इलाकों में बढ़ोतरी और नए केंद्र शामिल हैं।

विशेषज्ञों का अभिव्यक्ति

विशेषज्ञों का अभिव्यक्ति

डॉ. राकेश जोशी और डॉ. राजेश जेसवानी के अनुसार, इस संक्रमण से निपटने के लिए लक्षणों का प्रभावी प्रबंधन महत्वपूर्ण है। संधिप्राणियों की अधिकता वाले क्षेत्रों में इसके प्रकोप का सीधा संबंध है। इसके साथ ही, डॉ. संदीपकुमार त्रिवेदी ने बीमारी के व्यवहार और वाहक में हो रहे परिवर्तनों पर प्रकाश डाला। परीक्षणों से यह भी ज्ञात हुआ है कि संधिप्राणियों की संख्या और क्षेत्रों में संक्रमण के फैलाव में महत्वपूर्ण बदलाव हो रहे हैं।

इतिहास और वर्तमान स्थिति

ध्यान देने योग्य है कि चांडीपुरा वायरस का पहली बार 1965 में पता चला था। 2003-2004 में महाराष्ट्र, उत्तरी गुजरात, और आंध्र प्रदेश में इस वायरस ने भारी प्रकोप के रूप में 300 से अधिक लोगों की जान ले ली थी। वर्तमान स्थिति में इस वायरस की मौजूदगी विभिन्न राज्यों में देखी जा रही है।

इस प्रकार, गुजरात में चांडीपुरा वायरस संक्रमण की घटनाएं काफी चिंताजनक हैं। जनसंख्या के स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए त्वरित कदम उठाना आवश्यक है। बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रमुख स्वास्थ्य अधिकारियों और सरकार को मिलकर कार्य करना होगा। विशेष रूप से, ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य किया जाना चाहिए। जनता को भी सतर्क और जागरूक रहना होगा, ताकि इस प्रकोप को ठीक तरीके से संभाला जा सके।

टैग: चांडीपुरा वायरस गुजरात बच्चों की मौत संक्रमण

7 टिप्पणि

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    DINESH BAJAJ

    जुलाई 18, 2024 AT 04:48
    ये सब बकवास है। सरकार तो हर साल कुछ न कुछ वायरस निकालती है ताकि फंड मिल जाए। चांडीपुरा वायरस? ये तो 2004 में ही खत्म हो गया था। अब बच्चों की मौत का कारण गंदगी और नहीं पीने वाला पानी है, न कि कोई नया वायरस।
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    Rohit Raina

    जुलाई 19, 2024 AT 22:00
    मैंने अरावली में एक गांव में काम किया था। वहां संधिप्राणी इतने हैं कि रात को बिना जाल के सोना असंभव है। लेकिन सरकार ने कभी घरों में इन्सेक्टिसाइड स्प्रे नहीं किया। अब बच्चे मर रहे हैं - ये नेग्लिजेंस है, न कि बीमारी।
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    Prasad Dhumane

    जुलाई 21, 2024 AT 18:43
    इस तरह की त्रासदी में बस डॉक्टरों को दोष नहीं देना चाहिए। ये सब एक बड़े सिस्टम की नाकामी है - स्वास्थ्य बजट कम है, ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र खाली हैं, और लोगों को बुनियादी जागरूकता नहीं है। एक वायरस तो बस एक ट्रिगर है, असली बीमारी तो हमारा अनदेखा करना है। अगर हम इन गांवों में स्वच्छ पानी, मच्छरदानी और नियमित स्वास्थ्य चेकअप दे दें, तो ये सब रोका जा सकता है।
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    rajesh gorai

    जुलाई 22, 2024 AT 11:58
    लिंगुइस्टिक डिस्कोर्डेंस के तहत, ये वायरल एपिडेमिक एक सामाजिक-पर्यावरणीय एंट्रॉपी डायनामिक्स का प्रतिबिंब है। एंट्रॉपी बढ़ने के साथ, हमारी सामाजिक इम्यूनिटी घट रही है - यानी हम बीमारियों के प्रति अधिक वल्नरेबल हो रहे हैं। ये वायरस बस एक रिफ्लेक्टर है, न कि कारण।
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    Rampravesh Singh

    जुलाई 24, 2024 AT 09:43
    हमें तुरंत एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान शुरू करना चाहिए। सभी ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में डीडीटी स्प्रे, मच्छरदानी वितरण, और बच्चों के लिए स्वास्थ्य शिविर लगाए जाने चाहिए। यह अभियान राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है - भविष्य की पीढ़ी की रक्षा हमारी जिम्मेदारी है।
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    Akul Saini

    जुलाई 25, 2024 AT 11:13
    डॉ. त्रिवेदी के डेटा के अनुसार, संधिप्राणियों के वितरण में एक जलवायु-संबंधी शिफ्ट हो रहा है - ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अब उनकी उपस्थिति बढ़ रही है। ये एक क्लाइमेट-ड्राइवन एपिडेमियोलॉजिकल ट्रेंड है। यह वायरस केवल गुजरात की समस्या नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक अलर्ट है।
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    Arvind Singh Chauhan

    जुलाई 27, 2024 AT 00:18
    मैंने एक बच्चे को अरावली में देखा था - उसकी आंखें बंद थीं, श्वास तेज था, और उसकी मां बस रो रही थी। उस दिन मैंने सोचा - अगर ये बच्चा मेरा होता, तो क्या मैं इतना बेबस रह पाता? अब ये सब सिर्फ डेटा और रिपोर्ट्स नहीं हैं। ये खून है।

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