जब बात मानहानि केस, किसी व्यक्ति या संस्था की साख को घोटे या निराधार आरोपों से नुकसान पहुंचाने पर दायर की गई कानूनी दांव‑पेंच की आती है, तो कई जुड़े हुए पहलू सामने आते हैं। इसी कारण यह टैग विभिन्न समाचारों में दिखाई देता है, चाहे वह राजनीति, खेल या सोशल मीडिया में हो।
कानून, सिविल या आपराधिक प्रावधान जो मानहानि को परिभाषित करते हैं के अनुसार, साक्ष्य, इरादा और प्रकाशित सामग्री की सच्चाई तीन मुख्य स्तंभ हैं। अगर कोई व्यक्तिविशेष या संस्था सार्वजनिक रूप से झूठी बातें फैलाता है, तो पीड़ित नुकसान के अन्दाज़े के आधार पर क्षतिपूर्ति माँग सकता है। इस प्रक्रिया में न्यायपालिका, कोर्ट जिसकी भूमिका मुकदमे की सुनवाई और निर्णय देना है महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। न्यायालय अक्सर यह देखता है कि क्या टिप्पणी का उद्देश्य सार्वजनिक हित था या केवल दाग‑डिब्बाकारी। इसके साथ ही, छद्म नाम या गुमनाम पोस्ट पर भी मामला चल सकता है, अगर पहचान स्थापित हो सके।
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म और समाचार चैनल अक्सर स्वतंत्रता की आवाज़, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो भारतीय संविधान में संरक्षित है के नाम पर तेज़ी से जानकारी साझा करते हैं। लेकिन जब यह स्वतंत्रता दूसरों की साख को नुकसान पहुंचाती है, तो मानहानि कानून उसका संतुलन बनाता है। इस टेंशन को समझना पत्रकारों, ब्लॉगरों और आम जनता के लिए ज़रूरी है, क्योंकि एक छोटी‑सी टिप्पणी भी मुकदमे का कारण बन सकती है। कई हालिया मामले दिखाते हैं कि किस तरह ट्वीट या टीवी विश्लेषण से कोर्ट तक का सफ़र तय हो गया—जैसे खेल के सितारों पर फैंस की नकारात्मक टिप्पणी या राजनेताओं के खिलाफ ग़लत समाचार।
पिछले कुछ सालों में सार्वजनिक व्यक्तियों के खिलाफ मानहानि के मुकदमों में वृद्धि देखी गई है। भारतीय दंड संहिता की धारा 500 (आपराधिक मानहानि) और सिविल टॉर्ट के तहत क्षतिपूर्ति मांगने की प्रक्रिया दोनों ही आज के कानूनी परिदृश्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के तौर पर, एक प्रसिद्ध क्रिकेटर के खिलाफ सोशल मीडिया फैंस ने जो बयान लगाए, उन पर कोर्ट ने दंडात्मक फ़ीस और माफी की आज़माइश की। इसी तरह, एक प्रमुख राजनेता के खिलाफ एक पत्रकार के लेख ने केंद्रिय कोर्ट में सुनवाई को जन्म दिया, जहाँ न्यायालय ने पत्रकारिता की जिम्मेदारी पर ज़ोर दिया। इन घटनाओं ने यह स्पष्ट किया कि सार्वजनिक व्यक्तियों की साख सुरक्षित करने के लिए न केवल व्यक्तिगत उपाय बल्कि संस्थागत समर्थन भी ज़रूरी है।
नीचे आप विभिन्न समाचार लेख देखेंगे जो हाल के मानहानि केसों की पृष्ठभूमि, अदालतों के निर्णय, तथा मीडिया और कानून के बीच संवाद को उजागर करते हैं। इन लेखों में आप समझ पाएँगे कि कैसे साक्ष्य इकट्ठा किया जाता है, क्या‑क्या दण्ड हो सकते हैं, और किस तरह की रणनीतियों से बचा‑बचाया जा सकता है। तैयार रहें, क्योंकि आगे की सूची में हर लेख एक अलग‑अलग दृष्टिकोण से इस जटिल परिदृश्य को समझाने की कोशिश करता है।
पूर्व NCB अधिकारी Sameer Wankhede ने Shah Rukh Khan की Red Chillies Entertainment और Netflix के खिलाफ 2 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति की मांग की है, इस कारण कि वे ‘Bads of Bollywood’ वेब‑सीरीज़ को अपने ख़िलाफ़़ बदनाम करने वाला मानते हैं। उन्होंने इस मुकदमे को टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल को दान करने का इशारा भी किया। दिल्ली हाई कोर्ट ने इस दावे को अस्वीकार कर दिया, क्योंकि कारण‑स्थल दिल्ली में नहीं बना। यह कानूनी टकराव 2021 की ड्रग केस से जुड़ी पुरानी शिकायतों को फिर से ज़ोर देता है।
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