हसन नसरल्लाह का नाम सुनते ही ज़्यादातर लोगों को लेबनान, हिज्ब अल‑अस्सीफ़ और इज़राइल‑लेबनान विवाद याद आते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वे कैसे इस स्तर पर पहुँचाए? इस लेख में हम उनके जीवन, राजनीति और वर्तमान परिदृश्य को सरल भाषा में समझेंगे।
नसरल्लाह 1960 में बेयरूत के एक छोटे मोहल्ले में पैदा हुए। बचपन में ही वे धार्मिक स्कूलों में पढ़े और इज़राइल‑लेबनान संघर्ष से प्रभावित हुए। 1980 के दशक में उन्होंने हिज्ब अल‑अस्सीफ़ में शामिल होकर जल्दी ही नेता बन गए। उन्होंने अपनी बीरफ़ायिंग, दृढ़ता और जनसमर्थन से समूह को बड़ा बनाया।
1992 में उनका नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आया जब उन्होंने इज़राइल के साथ वार्ता के बावजूद लड़ाई जारी रखी। इस दौरान उनका बयान‑भाषण अक्सर रेडियो पर सुनाई देता था, जिससे आम लोग उन्हें ‘जोरदार आवाज़’ मानने लगे।
आज नसरल्लाह सिर्फ लेबनान के ही नहीं, बल्कि पूरे मध्य‑पूर्व की राजनीति में एक महत्वपूर्ण किरदार बन चुके हैं। उनका मुख्य लक्ष्य है लेबनान में शिया समुदाय को सशक्त बनाना और इज़राइल को ‘अवैध कब्ज़ा’ बताकर विरोध करना। इस संदर्भ में उन्होंने कई बार रॉकेट हमले, बॉम्बिंग और ग्राउंड ऑपरेशन को अंजाम दिया। इन कार्यों से उनका समर्थन भी बढ़ा और विरोधी भी घिनते रहे।
इज़राइल के साथ लगातार टकराव के कारण अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उनके प्रति मतभेद पैदा हुआ। अमेरिका और यूरोपीय देशों ने उन्हें ‘आतंकवादी’ कहा, जबकि कई अरब देशों ने उन्हें ‘विरोधी कब्ज़ा’ का प्रतीक माना। इस स्थिति में नसरल्लाह ने भाषण में हमेशा कहा कि उनका मकसद ‘शांति नहीं, बल्कि न्याय है’।
उनके विचारों का असर लेबनान की नीति में भी दिखता है। कई बार बेयरूत सरकार ने उनके बयान पर प्रतिक्रिया दी, कभी विपक्षी पार्टियों ने उनके कदमों का समर्थन किया, तो कभी उन्होंने लेबनान के भीतर राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा दिया।
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भविष्य में नसरल्लाह की क्या योजनाएँ होंगी? विशेषज्ञ कह रहे हैं कि अब वे अधिक कूटनीतिक रास्ते अपनाना चाहेंगे, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है। लेकिन उनकी पिछली रणनीतियों को देखते हुए, यह अनुमान लगाना कठिन है। चाहे जो भी हो, उनकी आवाज़ को अनदेखा करना मुश्किल रहेगा।
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हिज़बुल्ला ने पुष्टि की है कि हाशिम सफीद्दीन, जो समूह के अगले नेता माने जा रहे थे, एक इज़रायली हवाई हमले में मारे गए हैं। यह हमला दक्षिणी बेरूत में स्थित दाहियेह नामक स्थान पर हुआ, जहाँ सफीद्दीन और हिज़बुल्ला के अन्य वरिष्ठ सदस्य मौजूद थे। इस हमले में महत्वपूर्ण क्षति हुई और संगठन ने हमला होने के बाद से सफीद्दीन से संपर्क खो दिया था।
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