लोकतंत्र शब्द सुनते ही दिमाग में चुनाव, मतदायक और संविधान की छवि बनती है। लेकिन इसमें सिर्फ़ वोट देना नहीं, ये हर नागरिक की आवाज़ को सुनने, अधिकारों की रक्षा करने और सत्ता को जवाबदेह रखने का पूरा सिस्टम है। अगर आप राजनीति में रुचि रखते हैं या बस जानना चाहते हैं कि सरकार आपके रोज़मर्रा के फैसलों को कैसे प्रभावित करती है, तो यह लेख आपके लिए है।
पहला सिद्धांत है "जनता की इच्छा"। चाहे राष्ट्रीय स्तर पर बड़े चुनाव हों या स्थानीय निकायों में पंचायत चुनाव, सभी में जनता का सीधा चयन हो सकता है। दूसरा है "समानता" – सभी नागरिकों को वोट का बराबर अधिकार मिलता है, चाहे वह किसी भी वर्ग, धर्म या भाषा के हों। तीसरा है "कानून का शासन" – सरकार भी कानून के अधीन होती है, जिससे शक्ति का दुरुपयोग रोका जा सके। चौथा सिद्धांत है "स्वतंत्र संस्थाएँ" – न्यायपालिका, चुनाव आयोग, मानव अधिकार आयोग जैसे संस्थान सत्ता के दुरुपयोग को चेक करने में मदद करते हैं।
भारत का लोकतंत्र पाँच हजार साल की सभ्यता पर बनी एक जटिल संरचना है। यहाँ विभिन्न भाषाओं, धर्मों और सांस्कृतिक समूहों का संगम है, इसलिए नागरिकों की आवाज़ को एक साथ सुनना चुनौतीपूर्ण बन जाता है। फिर भी, चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और मीडिया की भूमिका ने बड़ी भूमिका निभाई है। ताज़ा खबरों में आप देखेंगे कि विभिन्न राज्यों में मौसम अपडेट, खेल प्रतियोगिताएं, विज्ञान विकास आदि भी लोकतांत्रिक संवाद का हिस्सा बनते हैं। जब प्रधानमंत्री को नया सचिव नियुक्त होता है या विदेशियों के साथ नीति बदलाव होते हैं, तो जनता इन बदलावों को सीधे सोशल मीडिया और समाचार साइटों के ज़रिए देखती है।
आज के दौर में लोकतंत्र सिर्फ़ कागज़ी प्रक्रिया नहीं रहा। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर लोगों की राय तेज़ी से बनती और फैलती है। टीट्यून्स जैसे पोर्टल पर आप विभिन्न मुद्दों पर टिप्पणी कर सकते हैं, अपने विचार साझा कर सकते हैं और कभी‑कभी तो नीति निर्माता भी इन फीडबैक को पढ़कर निर्णय लेते हैं। यही कारण है कि हर दिन नई कहानियाँ उभरती हैं – चाहे वह चंद्रयान‑3 की प्रगति हो, या मौसम विभाग का रेड अलर्ट, या फिर अंतरराष्ट्रीय राजनैतिक उथल‑पुथल।
लोकतंत्र में सवाल पूछना और जवाब माँगना भी ज़रूरी है। जब ट्रम्प ने BRICS पर हमला किया, या जब भारत में कई राजनैतिक पदों पर नई नियुक्तियां हुईं, तो ये सब चर्चा के विषय बनते हैं। इन चर्चाओं से ही हम अपनी सरकार को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। आपका सवाल, आपका वोट, आपका सोशल मीडिया पोस्ट – सब मिलकर लोकतंत्र को живित रखते हैं।
अंत में, लोकतंत्र का असली मतलब है आत्मविश्लेषण – यह पूछना कि क्या हम सभी को बराबर अधिकार मिल रहे हैं और क्या सत्ता हमारे लिए काम कर रही है। हर समाचार, हर टिप्पणी, हर वोट हमें इस बड़े सवाल के जवाब की तरफ ले जाता है। इसलिए, जब भी आप कोई ख़बर पढ़ें या कोई वीडियो देखें, तो बस पढ़ें नहीं, सवाल भी उठाएँ। यही लोकतंत्र का असली अनुभव है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला द्वारा 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल की तीखी आलोचना करने के लिए धन्यवाद दिया। मोदी ने बिड़ला की उस समय के अतिरेक को उजागर करने और लोकतंत्र का गला घोंटने के तरीके को दिखाने के लिए प्रशंसा की। बिड़ला ने 25 जून, 1975 को भारतीय इतिहास का 'काला अध्याय' करार दिया।
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