अगर आपने अभी तक मलयालम सिनेमा नहीं देखा, तो आप बहुत कुछ मिस कर रहे हैं। ये इंडस्ट्री सिर्फ दक्षिण भारत की नहीं, पूरी दुनिया की फैंस को अपनी कहानी, संगीत और विजुअल्स से प्रभावित करती है। चलिए, इस जादू को करीब से देखते हैं।
मलयालम फिल्म उद्योग की शुरुआत 1928 में हुई, जब पहली साइलेंट फिल्म ജയശ്രീ (Jaya Shri) रिलीज़ हुई। शुरुआती सालों में बजट कम था, लेकिन कहानी कहने का तरीका बहुत असरदार था। 1950‑60 के दशक में जब रंगीन फ़िल्में आईं, तब से ही इस इंडस्ट्री ने गति पकड़ी।
1960‑70 में कोमलपानी और फाज़िल की धड़कन जैसी क्लासिक फिल्में बनीं, जिन्होंने भारतीय सिनेमा में नया मानक स्थापित किया। उस दौर के निर्देशक जैसे एफ़सी फ्रांसिस और जे.वन्य ने सामाजिक मुद्दों को बड़े सोज़ के साथ पर्दे पर लाया।
आजकल मलयालम फिल्मों में विविधता देखने को मिलती है—उच्च-आक्शन, रोमांस, थ्रिलर, और बायोपिक सब कुछ। मुहम्मद सल्लाहु और फर्नांडा एलूश जैसी नई पीढ़ी के अभिनेता अपने किरदारों में गहराई लाते हैं। उनके साथ, डिरावामर जैसी निर्देशक भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रशंसा पा रहे हैं।
स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म ने भी इस इंडस्ट्री को नई ताकत दी है। नेटफ्लिक्स और अमेज़न प्राइम पर मलयालम फिल्मों का कलेक्शन बढ़ रहा है, जिससे विदेशियों को भी इस भाषा की सौंदर्यशास्त्र समझ में आती है।
संगीत की बात करें तो मलयालम फिल्में अपने मेलोडी और सॉन्ग्स के लिए जानी जाती हैं। ऐश्वर्य देव और आविनाश राव जैसे संगीतकारों ने कई हिट गाने तैयार किए हैं, जो अक्सर चार्ट‑टॉप पर रहते हैं।
अगर आप पहली बार देख रहे हैं, तो बॉर्रो मंगलानी, ऐथिरी और कडामा जैसी फिल्में शुरू में चुनें। ये फिल्में दर्शाती हैं कि कैसे छोटे-छोटे गाँव की कहानी भी बड़े पैमाने पर साकार हो सकती है।
अंत में, मलयालम फिल्म उद्योग सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का माध्यम भी बन रहा है। कई फिल्में महिलाओं की सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण और लिंग समानता जैसे मुद्दों को उजागर करती हैं। इस वजह से दर्शकों की अपेक्षाएँ भी बढ़ी हैं, और निर्माता बेहतर कंटेंट देने के लिये प्रेरित हैं।
तो, अगली बार जब भी आप फ़िल्मों का चयन करें, मलयालम सिनेमा को एक विकल्प के रूप में जरूर देखें। आप न केवल एक नई भाषा के साथ जुड़ेंगे, बल्कि भारतीय सिनेमा की गहरी जड़ों को भी समझ पाएंगे।
मलयालम अभिनेता-निर्माता बाबूराज पर एक जूनियर आर्टिस्ट ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। आरोप के अनुसार, यह घटना 2019 में हुई थी। बाबूराज ने आरोपों से इनकार किया है और कानूनी कार्रवाई की धमकी दी है। यह मामला हिमा कमेटी रिपोर्ट के खुलासे के बाद सामने आया है, जिसमें मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं के अनुभवों पर प्रकाश डाला गया था।
केरल हाई कोर्ट के डिवीजन बेंच ने अभिनेता रंजीनी उर्फ साशा सेल्वराज की अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने हेमा समिति की रिपोर्ट को प्रकाशित करने के एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी थी। अदालत ने रिपोर्ट को सीमित संशोधनों के साथ सार्वजनिक करने का आदेश दिया।
© 2025. सर्वाधिकार सुरक्षित|