जब सेंसेक्स भारत के बैंकों में ट्रेड होने वाले 30 प्रमुख शेयरों का औसत सूचकांक है, जो देश की आर्थिक ताकत को दर्शाता है. अक्सर इसे सेंसेक्स इंडेक्स भी कहें तो लोग समझते हैं कि यह राष्ट्रीय आर्थिक गति का मीटर है। आज के समय में सेंसेक्स गिरावट कई निवेशकों के दिमाग में सवाल उठाती है – क्यों गिर रहा है और आगे क्या होगा? यह परिचय उन कारणों को उजागर करेगा जो इस गिरावट को चलाते हैं, और दिखाएगा कि इस प्रवृत्ति को कैसे पढ़ा जाए।
सेंसेक्स गिरावट को समझने के लिए आर्थिक डेटा जीडीपी, मुद्रास्फीति, रोजगार आंकड़े आदि को सम्मिलित करता है, जो निवेशकों की उम्मीदों को सीधे प्रभावित करता है बहुत अहम है। जब जीडीपी की वृद्धि दर स्निग्ध हो या मुद्रास्फीति बढ़ती दिखे, तो कंपनियों के लाभ में गिरावट की आशंका बना देती है, जिससे शेयरों की कीमतें नीचे आती हैं। साथ ही, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की ब्याज दर नीति, विशेषकर जब वह दरें बढ़ाने की ओर मोड़ लेती है, तो रिटर्न की तलाश में पैसा बॉण्ड और फिक्स्ड डिपॉज़िट की ओर झुकता है, जिससे equities पर दबाव बढ़ता है।
वैश्विक स्तर पर Nifty 50 NSE पर ट्रेड होने वाले 50 बड़े शेयरों का बेंचमार्क इंडेक्स है, जो अक्सर सेंसेक्स के साथ चल रहा होता है का प्रदर्शन भी सेंसेक्स को सीधे प्रभावित करता है। अगर यूएस फेडरल रिज़र्व की मौद्रिक नीति कड़ी हो, तो पूरे विश्व में जोखिम वाले एसेट्स की कीमत घटती है, और भारतीय बाजार भी इसका असर महसूस करता है। अंतरराष्ट्रीय तेल की कीमतों में अचानक उछाल या गिरावट, बड़ी कंपनियों की लागत और मार्जिन को बदल देती है, जिससे शेयर बाजार के भाव में उतार-चढ़ाव आता है।
इन कारणों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी बाजार भावना निवेशकों की मनोस्थिति, भय, आशावाद और जोखिम लेने की इच्छा को दर्शाता है है। जब डेटा निराशा दिखाता है, तो भय बढ़ता है; जब नीति स्पष्टता मिलती है, तो आशावाद लौटता है। यही भावना निवेशकों को तेज़ी से शेयर बेचने या खरीदने के लिए प्रेरित करती है, जिससे सेंसेक्स में अचानक गिरावट या उछाल देखे जा सकते हैं।
तकनीकी तौर पर, एक गिरते हुए सेंसेक्स में अक्सर चार्ट पैटर्न जैसे ‘हेड एंड शोल्डर्स’ या ‘डबल टॉप’ उभरते हैं, जो अगले कदम की उम्मीद को बताते हैं। वॉल्यूम के साथ जब गिरावट बढ़ती है, तो यह संकेत मिलता है कि बड़े संस्थागत पैसे बाहर निकल रहे हैं। ये संकेत को समझना ट्रेडर्स के लिए लाभदायक हो सकता है, क्योंकि यह उन्हें एंट्री या एक्सिट पॉइंट तय करने में मदद करता है।
सेक्टरwise असर को देखना भी जरूरी है। जब सेंसेक्स गिरता है, तो अक्सर बैंकिंग और फाइनेंशियल स्टॉक्स पहले झटके लेते हैं, क्योंकि वेरिएबिलिटी और लिक्विडिटी सबसे अधिक होती है। तेल और गैस कंपनियों के स्टॉक्स भी तेल कीमतों के साथ डांस करते हैं, जबकि आईटी और कंज्यूमर गुड्स वाले स्टॉक्स अक्सर अधिक स्थिर रहते हैं, लेकिन लम्बे समय में लाभ मार्जिन पर असर देख सकते हैं। इसी कारण निवेशकों को अपने पोर्टफ़ोलियो को विविध बनाकर जोखिम कम करना चाहिए।
गिरावट के दौर में निवेश रणनीति बदलना एक समझदारी भरा कदम है। यदि आपके पास लंबी अवधि का होराइज़न है, तो बाजार की अस्थायी गिरावट को ‘डॉलर कॉस्ट एवलिंग’ के माध्यम से और अधिक शेयर खरीदने का अवसर मान सकते हैं। वहीं, छोटे समय के ट्रेडर्स को स्टॉप-लॉस सेट करना, टेक्निकल इंडिकेटर्स जैसे RSI और MACD को देखना, और बाजार के ट्रेंड का पालन करना चाहिए। इन तरीकों से आप नुकसान को सीमित रखते हुए संभावित रिवर्सल का लाभ उठा सकते हैं।
आज हमने सेंसेक्स गिरावट के प्रमुख कारणों, आर्थिक डेटा, नीति बदलाव, वैश्विक सूचकांकों और बाजार भावना के बीच के संबंधों को समझा। आगे नीचे आपको विभिन्न लेखों की सूची मिलेगी जो इन पहलुओं को गहराई से बताती हैं – चाहे आप एक शुरुआती निवेशक हों या अनुभवी ट्रेडर, यहाँ से आप अपने निवेश निर्णय को सुदृढ़ बना सकते हैं।
शेयर मार्केट ने 25 सितंबर को पाँचवीं लगातार गिरावट दर्ज की, सेंसेक्स 556 अंक गिरा और निफ्टी 24,900 के अहम स्तर से नीचे गिरा। इस गिरावट के पीछे विदेशी संस्थागत निवेशकों का भारी आउटफ्लो, रुपये की दर में निरंतर गिरावट, अमेरिकी टैरिफ की चिंता और सोना‑चांदी की रिकॉर्ड ऊँचाई शामिल हैं। बाजार में वॉल्यूम‑स्लाइसिंग, RBI की मुद्रा हस्तक्षेप और SEBI के प्रतिबंध भी आगे के जलवे को रोकने की कोशिश कर रहे हैं।
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